05-08-2013, 06:24 PM | #1 |
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नमकीन पानी की धाराएं
पानी, एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन पदार्थ है. पानी को जिस बर्तन भी बर्तन में रख दो, उसका आकार ले लेता है. पानी निकाल दो, हवा उसका जगह ले लेता है. मौसम भी पानी जैसा होता है. नहीं मौसम पूरी तरह से पानी जैसा नहीं होता. यह आयतन के मामले में पानी जैसा होता है. मौसम से हमारा वातावरण कभी खाली नहीं होता. एक जाता है तो दूसरा डेरा जमा लेता है. मौसम के रंग होते है, गंध होते हैं और स्वाद भी होते हैं. और जब मौसम में रंग, गंध और स्वाद नहीं होते तो यह पानी जैसा हो जाता है. तब मौसम बेरंग, और बेस्वादी हो जाता है. बहना - बिना किसी मकसद के, फर्क के. शहर के शोर में टूटा हुआ एक दिल जैसा, बस काम काम और काम की धुन, बस चलना, चलना और चलने की जिद जैसा, पुराने किले के सर पर पीछे से पड़ता चाँद के प्रकाश जैसा जिसके आगे किले लम्बाई से अँधेरा हो. एक विरोधाभास जैसा. हम सभी अल्लाह की संतान हैं पर उंच नीच का स्थाई स्वाभाव जैसा. वैसा.
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
05-08-2013, 06:25 PM | #2 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
ज़हर, अमृत, विरासत, फकीरी, दुःख, सुख, ज्ञान, अँधेरा, रास्ता और रुकावटें. सभी कुछ ना कुछ छोड़ रहे हैं, कारखाना धुंआ छोड़ रही है. ... और मैं अपनी गर्ल फ्रेंड को छोड़ने एयरपोर्ट जा रहा हूँ.
वो मुझे और इस शहर को छोड़े जा रही है. पैरों के पास काफी सामान है, कुछ सामान को सीट पर भी रखना पड़ा है.. ऑटो का रोन्ग साईड से पर्दा लगा हुआ है. सड़क पतली है. रातरानी शाम से ही महकना शुरू कर देती है. उसकी महक से मदहोशी आने लगती है. हमारे पास एक दुसरे से बोलने को कुछ नहीं है. दोनों के पास एक सूखता हुआ चेहरा है, हेयरपिन में फडफडाते उसके बाल हैं, बाहर घिरता अँधेरा है. गुलाबी सी ठंढ है. एक तरफ खुला रहने से उतनी समस्या नहीं है जितनी परदे से होकर आता थोड़ी थोड़ी देर में तेज़ ठंढ हवा. जैसे कम्बल में गर्म होते ही कोई दोस्त उसे बार बार खिंच ले और सारी मेहनत बेकार चली जाए.
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05-08-2013, 06:25 PM | #3 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
हम पास बैठे हैं. बहुत करीब. उसका चेहरा उतना ही सर्द है जैसे चार डिग्री पर भारी होता पानी. उदासी भरी पलकें, लगता है उसने नशे की सुई ली हो. अँधेरे में उसकी आँखों में एक हारा हुआ समर्पण है जैसे गली में किसी कुतिया ने ढेर सारे बच्चे दिए हों और सबसे कमजोर बच्चा अपने भाई बहनों को माँ के सारे स्तन व्यस्त रखता देखें और अपने लिए कोई जगह ना देख सके तो निरीह सा गली से बाहर निकल आये.
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05-08-2013, 06:25 PM | #4 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
हमारी साँसें टकराने लगी, हमने वहीँ अपना घर बसाने का सोचा. आखिर कमी क्या थी, उस लम्हें में ऑटो हमारी दुनिया बन गयी थी. चलाने वाला था ही, वो सही रास्ता ले जाएगा इसका भरोसा भी था, पास में सामान था, और ऑटो सफ़र कर रही थी. हलचल का पता कभी कभी सड़क में पड़ते गड्ढे और घर में घुसती हवा दे देती थी.
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05-08-2013, 06:25 PM | #5 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
बहुत व्यस्तता के कारण मेघा उस दिन नहा नहीं पायी थी, बासी बदन मुझे शुरू से अच्छा लगता है किसी किताब जैसा. जैसे उसने अपने पास कहानी रहते हुए भी, किसी पढ़े जाने के चेहरे को भी कई बार पढ़ा हो (और पढने वाले सोचते हैं हमने वो किताब पढ़ी, किताब भी तो हमें पढ़ लेती है, तलाश लेती है की कितने इंसान हैं हम, कैसे इंसान हैं हम, क्या छुपा है हममें सबसे ज्यादा). किताब एक औरत बन आई होती है. फिलहाल मेघा किताब थी, औरत थी. वो औरत जिसने कल रात आखिरी बार बिस्तर गर्म किया था और जिसके छोड़ कर जाने का दर्द अब मुझे ता-उम्र गर्म रखने वाला था.
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05-08-2013, 06:26 PM | #6 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
हम माहौल गर्म करते, बाहर से आती ठंढी और ताज़ी हवा सब कुछ उड़ा ले जाती. मैं हमेशा खुली आबो हवाहवा पसंद करता हूँ लेकिन यह पहली बार था की मैं बंद हो जाना चाहता था. उस ऑटो से हमारी महक, गर्म साँसें बाहर निकलती थी और मुझे एक अजीबोगरीब झुन्झुलाहट से भर देती. मुझे अपने माहिम पर गुज़ारे गए दिन याद आने लगे जब खोली के अन्दर पर्दा करने के सारी कोशिशें नाकाम हो गयी थी. नंगे बदन रहना सबसे ज्यादा एहसास देता है एकबारगी वो कहानी कौंध गयी जब अरुण ने गुरु के इस आदेश को की मेरे खेत में पानी मत घुसने देना को सर माथे मान मेड़ पर लेट गया था और लेटने बाद भी खेत में पानी का घुसना अपने बदन के मार्फ़त महसूस कर रहा था. कई बार हमारा दिमाग छठी से लेकर दसवी इन्द्रिय तक के काम कर लेता है.
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05-08-2013, 06:26 PM | #7 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
थोड़ी देर बाद ऑटो ने करवट ली, हवा के तेज़ झोंके बंद हो गए. हम (मैं और मेघा) करीब होते गए. मेघा की जिस्म से शदीद किस्म की महक आ रही थी, मैं उसके बालों को चूमता और सरसों के खेत महक उठते, माथे को होंठों से लगाता अंगूठी का नगीना बेसब्र हो उठता. गर्दन पर के सुनहरे रोये पर छोड़ कर ना जाने वाली इल्तजा भरे सासें उतारता तो जिस्म के सारे औराक थरथरा उठते.
साइड मिरर से ऑटो वाले की निगाह मुसलसल हमपर टिकी हुई थी. चूल्हें में एक फूंक मारी थी हमने ऑटो की चाल धीमी हो चली थी, मैं जानता था वो अब जानबुझ कर देर करेगा और लम्बे रास्ते से ले जाना चाहेगा. मेरी इमानदारी उससे ज्यादा बेईमान थी.
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05-08-2013, 06:26 PM | #8 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
आखिरकार होंठों ने माहौल मुताबिक अपनी जगह तलाश कर ही ली. मेरे होंठ मेघा से होंठ से उलझ गए. यह सिलसिला कितना लम्बा चला मुझे याद नहीं. हम एक दुसरे को छोड़ने की कोशिश करते और फिर उलझ जाते. आखिरी बार एक सुकून तलाश कर रहे थे और क़यामत की बात , हमें वो मिला भी. यहाँ कोई गड्ढा नहीं था. जो था भी तो सबकी ज़मीन चिकनी थी. और गले की चिमनी से निकला अरमानों के आग एक दुसरे को बांधे थे. यह प्यार का एक्सटेंशन था या प्यार इसका एक्सटेंशन था मुझे पता नहीं. काश हमारे रिश्ते में भी ऐसा उलझन होता, पुराने दिन अच्छे थे साथ चलने का एक दबाव होता था.
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05-08-2013, 06:26 PM | #9 |
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Re: नमकीन पानी की धाराएं
मेरे होंठ और जीभ मेघा के होंठ और जीभ की तलाशी ले रहे थे. दोनों की आँखों में आंसू थे, नमकीन पानी की नदी की चार धारा बहती जा रही थी.
हम दोनों जानते थे अब हमारा जीवन इसके बाद पानी जैसा ही हो जाएगा. हम अब किसी और से उलझते रहेंगे और उसमें मिल जायेंगे. मिलते जायेंगे और बहते रहेंगे और जब निकलेंगे हमारी जगह कोई और ले लेगा.
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