28-12-2010, 01:13 PM | #91 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं। कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था: भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है – एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें। यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ।
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28-12-2010, 01:14 PM | #92 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
करवा चौथ की महत्ता
करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं। शुरूआत और महतव : इस पर्व की शुरूआत एक बहुत ही अच्छे विचार पर आधारित थी। मगर समय के साथ इस पर्व का मूल विचार कहीं खो गया और आज इसका पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है।
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28-12-2010, 01:14 PM | #93 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
पुराने जमाने में लड़कियों की शादी बहुत जल्दी कर दी जाती थी और उन्हें किसी दूसरे गांव में अपने ससुराल वालों के साथ रहना पड़ता था। अगर उसे अपने पति या ससुराल वालों से कोई परेशानी होती थी तो उसके पास कोई ऐसा नहीं होता था जिससे वो अपनी बात कह सके या मदद मांग सके। उसके अपने परिवार वाले और रिश्तेदार उसकी पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे। उस जमाने में ना तो टेलीफोन होता था, ना बस और ना ही ट्रेन।
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28-12-2010, 01:15 PM | #94 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
इस तरह एक रिवाज की शुरुआत हुई कि शादी के समय जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचेगी तो उसे वहां एक दूसरी औरत को दोस्त बनाना होगा जो उम्र भर उसकी बहन या दोस्त की तरह रहेगी। ये धर्म-सखी या धर्म-बहन के जैसा होगा। उनकी मित्रता एक छोटे से हिन्दू पूजन समारोह द्वारा शादी के समय ही प्रमाणित की जायेगी। एक बार दुल्हन और इस औरत के धर्म-सखी या धर्म-बहन बन जाने के बाद जिन्दगी भर इस रिश्ते को निभायेंगी। वे आपस में सगी बहनों जैसा बर्ताव करेंगी।
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28-12-2010, 01:15 PM | #95 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
बाद में किसी तरह की परेशानी होने पर, चाहे वो पति या ससुराल वालों की तरफ से हो, ये दोनों औरतें आपस में बात कर सकती हैं या एक दूसरे की मदद कर सकती हैं। एक दुल्हन और उसकी धर्म-सखी (धर्म-बहन) के बीच इस मित्रता (सम्बन्ध) को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
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28-12-2010, 01:15 PM | #96 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
इस तरह करवा चौथ की शुरुआत हुई। पति की भलाई के लिए पूजा और व्रत इसके बहुत बाद में शुरु हुआ। ऐसी आशा है कि इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाने के लिए इसे पुरानी कथाओं के साथ जोड़ दिया गया।
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28-12-2010, 01:16 PM | #97 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
मूलत: करवा चौथ इस धर्म-सखी (धर्म-बहन) के रिश्ते को फिर से नवीन रूप देने और मनाने का सालाना पर्व है। ये उस समय की एक सर्वश्रेष्ठ सामाजिक और सांस्कृतिक महानता थी जब दुनिया में बातचीत के तरीकों की कमी थी और आना-जाना इतना आसान नहीं था।
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28-12-2010, 01:16 PM | #98 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
परम्परागत कथा (रानी वीरवती की कहानी): बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक सुन्दर लड़की थी। वो अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ के मौके पर वो अपने मायके आ गई। उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बेताबी से चांद के उगने का इन्तजार करने लगी। उसके सातों भाई उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। वे अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने वीरवती का व्रत समाप्त करने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। वीरवती ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर खाना खा लिया। रानी ने जैसे ही खाना खाया वैसे ही समाचार मिला कि उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई है।
रानी तुरंत अपने राजा के पास भागी। रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था। रानी ने तुरंत क्षमा मांगी। पार्वती देवी ने कहा, ''तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिये तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा। तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा।'' उसके बाद रानी वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि से संपन्न किया और अपने पति को दुबारा प्राप्त किया। इस पर्व से संबंधित अनेक कथाएं प्रसिध्द हैं जिनमें सत्यवान और सावित्री की कहानी भी बहुत प्रसिध्द है।
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28-12-2010, 01:17 PM | #99 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
अहोई अष्टमी व्रत कथा(1)
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापेती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल से के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
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28-12-2010, 01:17 PM | #100 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
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