19-10-2013, 06:23 PM | #1 |
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कसूर किया है…बंसी
शेर है उसने बनाया, उसे माँसाहारी भी उसने बनाया, भूख है उसने लगाई, जीने की चाह भी उसने जगाई, जीने के लिए भूख मिटानी होगी, भूख मिटाने के लिए कुछ खाना होगा खाने के लिए किसी को मारना होगा, मार कर शेर किसी को खाए तो इसमें शेर का कसूर क्या है मच्छर भी है उसने बनाया, उसका भोजन खून बनाया, उसको भी तो जीना होगा, खून किसी का पीना होगा , खून किसी का वो पीये तो उसका कसूर क्या है मेरा खून वो पीयेगा तो मैं तो उसको मारूँगा, मुझे भी तो जीना है इसमें मेरा कसूर क्या है बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 20-10-2013 at 06:57 PM. |
19-10-2013, 06:36 PM | #2 |
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Re: कसूर किया है…बंसी
bhai waah kyaa khub kHI
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19-10-2013, 06:39 PM | #3 |
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Re: कसूर किया है…बंसी
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19-10-2013, 10:37 PM | #4 |
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Re: कसूर किया है…बंसी
मित्र, आपकी रचना में निम्नलिखित त्रुटियों को मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ. आशा है आप भविष्य में इस बारे में अतिरिक्त चेष्टा करेंगे.
किया = क्या कुच्छ = कुछ उसका कसूर किया है ? (पये = यहां अनावश्यक है) इसमें मेरा कसूर किया है ? Last edited by rajnish manga; 19-10-2013 at 10:54 PM. |
20-10-2013, 08:58 AM | #5 | |
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Re: कसूर किया है…बंसी
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