20-09-2014, 10:02 PM | #11 | |
Moderator
Join Date: Sep 2014
Location: UP
Posts: 623
Rep Power: 31 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
रजत जी आपके इस मत से मैं सहमत नहीं हूँ कि प्रेमी युगल के मध्य प्रेम की भावना श्रेष्ठतम है। आप भूल रहे हैं कि इस दुनिया में एक माँ का प्रेम अपने बच्चे के लिए श्रेष्ठतम होता है। क्यूंकि उसमें स्वार्थ नहीं होता , त्याग होता है। मुझे नहीं लगता कि एक माँ के प्रेम की तुलना किसी भी व्यक्ति द्वारा किये गए प्रेम से की जा सकती है। अपने Titanic मूवी के जिस दृश्य का ज़िक्र किया वो वास्तव में बहुत ही भावुक दृश्य था। जिसे देखने के बाद शायद सभी वैसा ही प्रेम पाने की अभिलाषा करने लगे। पर क्या आपको नहीं लगता कि अगर वैसा ही दृश्य एक माँ और पुत्र के बीच में हो तो नज़ारा यही होगा ? अगर कभी किसी की माँ ऐसी स्थिति में हो तो क्या एक पुत्र अपनी माँ को नहीं बचाएगा ? हो सकता है दृश्य में थोड़ा परिवर्तन हो जाये , लकड़ी के तख्ते पर पुत्र हो और माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए पानी में खड़ी हो। तो ये कहना उचित नहीं है कि कौन सा प्रेम श्रेष्ठतम है , प्रेम की तुलना करना सही नहीं है। सभी रिश्ते अपनी जगह होते हैं। और सभी रिश्तों में मौजूद प्रेम श्रेष्ठतम होता है। आपके एक कथन को समझने में मुझे थोड़ी दिक्कत महसूस हो रही है , तो इसे थोड़ा स्पष्ट करने का प्रयास कीजियेगा - प्रायः लोगों की आदत होती है- अपने बारे में अपने दोस्तों को ‘ए टू जेड’ बिना रुके बताने की. अपनी इस प्रवृत्ति को बदलिए. यह प्रवृत्ति आपके लिए कभी भी घातक सिद्ध हो सकती है. |
|
21-09-2014, 12:34 PM | #12 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
मित्रो, मैं सोचता हूँ कि चर्चा का विषय 'प्रेम और त्याग' को जान-बूझ कर शब्द जाल में फंसा कर हमारे अवस्तरीय टीवी सीरियलों की तरह लम्बा खींचा जा रहा है. ऐसी चर्चा का कोई उद्देश्य नहीं जिसे आप सीधे सरल तरीके से किसी निष्कर्ष पर न पहुंचा सकें. यह जरूरी नहीं कि जहां-तहां (किताबों, फिल्मों आदि) से अनावश्यक उद्धरण दे कर चर्चा को बोझिल बना दिया जाये. कई स्थानों हमने यह देखा है कि गंभीर विमर्श के चलते उसको हंसी-मज़ाक का मंच बनाने और चर्चाको हाईजैक करने तथा उसे किसी ओर दिशा में ले जाने की कोशिश भी की गयी. वर्तमान चर्चा में प्रेम को स्त्री-पुरुष के प्रेम पर ही फोकस करने और प्रेम में ‘अति’ का औचित्य कहाँ से आ गया? इस प्रकार के दिशाहीन-विचार विमर्श से आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं? और इससे क्या हासिल होगा?
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 02:18 PM | #13 | |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
|
|
21-09-2014, 02:43 PM | #14 | |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
|
|
21-09-2014, 03:08 PM | #15 | |
Diligent Member
Join Date: May 2014
Location: east africa
Posts: 1,288
Rep Power: 66 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
धन्यवाद रजत जी पवित्रा जी और रजनीश जी इस विषय पर इतना प्रकाश डालने के लिए किन्तु मेरा आप लोगो से अब भी ये ही एक अनुरोध रहेगा की इस विषय की व्यापकता को समझकर छोटे या बड़े परदे की बातें न लायें न ही किसी ईयर बुक को ... Last edited by soni pushpa; 21-09-2014 at 03:41 PM. |
|
21-09-2014, 03:50 PM | #16 | |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
|
|
22-09-2014, 12:42 AM | #17 | ||
Diligent Member
Join Date: May 2014
Location: east africa
Posts: 1,288
Rep Power: 66 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
Quote:
|
||
22-09-2014, 01:43 PM | #18 | |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
|
|
22-09-2014, 02:03 PM | #19 | |
Diligent Member
Join Date: May 2014
Location: east africa
Posts: 1,288
Rep Power: 66 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
|
|
22-09-2014, 04:04 PM | #20 | |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29 |
Re: प्रेम.. और... त्याग...
Quote:
बच्चे मन के सच्चे... सारी जग के आँख के तारे.. ये वो नन्हे फूल हैं जो.. भगवान को लगते प्यारे.. खुद रूठे, खुद मन जाये, फिर हमजोली बन जाये झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें इनकी किसी से बैर नहीं, इनके लिये कोई ग़ैर नहीं इनका भोलापन मिलता है, सबको बाँह पसारे बच्चे मन के सच्चे... इन्सान जब तक बच्चा है, तब तक समझ का कच्चा है ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े, मन पर झूठ का मैल चढ़े क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे, लालच की आदत घेरे बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे बच्चे मन के सच्चे... तन कोमल मन सुन्दर हैं बच्चे बड़ों से बेहतर इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं भाषा की तक़रार नहीं, मज़हब की दीवार नहीं इनकी नज़रों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे बच्चे मन के सच्चे... अतः यह स्पष्ट है कि ‘एक कला को सीखने के लिए मनुष्य को स्वयं प्रयत्न कारण पड़ता है’ और ‘गुण सीखा नहीं जाता और न ही यह मनुष्य में पहले से विद्यमान कोई नैसर्गिक वस्तु है. एक मनुष्य का गुण उसके चारों और व्याप्त सामाजिक (social) परिवेश (surroundings) पर आधारित होता है. इसलिए मनुष्य का गुण परिवर्तनशील है. इसका अर्थ यह है कि सामाजिक (social) परिवेश (surroundings) के आधार पर मनुष्य का गुण बदल सकता है और किन गुणों को ग्रहण करना है, किन गुणों को नहीं ग्रहण करना है- यह पूर्णतः मनुष्य की मानसिकता पर निर्भर करता है. अतः यह स्पष्ट है कि जो लोग सामाजिक (social) परिवेश (surroundings) के अनुरूप अपने गुणों को नहीं बदलते और दृढतापूर्वक अच्छे गुणों को आत्मसात किये रहते हैं वे ही महान की श्रेणी में आते हैं.’ |
|
Bookmarks |
|
|