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![]() इनका नाम सुन चुका हूँ पर इनके बारे में यह सब जानता नहीं था। |
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डॉ. श्याम बेडसे mbbs
प्रसंग लेखक: सागर नाहर श्याम भाई ने डॉक्टर बन कर एक करिश्मा कर दिखाया है, और वह भी अपने जीवन के 51वें वर्ष में! महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में जन्मे श्यामबेडसे की इच्छा थी कि वे डॉक्टर बनेऔर उन्होने 1976 में मेडिकलशिक्षा के लिये प्रवेश लियाऔर पारिवारिक कारणों से उन्हें एक साल बाद ही अपना शिक्षण अधूरा छोड कर घर गृहस्थी संभालनी पड़ी। उनका विवाह हुआ कल्पना से जो एक नर्सहै। विवाह के बाद बच्चे हुएऔर घर गृहस्थी में श्यामऐसेफँसे कि उनके अरमान धरे रह गये। एक दिन कल्पना को पता चला कि उनके पति की इच्छा थी किवे डॉक्टर बने। कल्पना ने अपने पति को प्रोत्साहित किया कि वे फिर से एक कोशिश करें। डॉ श्याम ने कोशिश की परउन्हें मायूसी हाथ लगीजब कई मेडिकल कॉलेजों ने उन्हेंदाखिला देने से मना कर दिया पर श्याम और कल्पना हिम्मत नहीं हारे, आखिरकार उन्हें दाखिला मिला और इस वर्ष श्याम नेअपनी शिक्षा पूरी की और 31 वर्ष बाद डॉक्टर बन ही गये। श्याम बेडसे को अपनी पढ़ाई के दौरान कईमुसीबतों का सामना करना पड़ा, एक बार तो उन्हें फर्जीडिग्री लेकर डॉक्टरी करने के आरोप मेंदोनो पति पत्नी को सात दिन की जेल यात्राभी करनी पड़ी यह बात अलग है कि सेशन कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी किया।इस दौरान कल्पनाने ही सारी गृहस्थी कोसंभाला और पति तथा दोनो बच्चों की पढ़ाई के खर्चों का भी बंदोबस्त किया। इस वजह से डॉ श्याम अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपनी पत्नी कल्पना को देते हैं। डॉ श्याम फिलहाल पुणे के बी जे मेडिकल कॉलेज में अपनी इंटर्नशिप पूरी करने के बाद उनकी इच्छा है किवे आर्थिक रूप से अक्षम लोगों के लिये अस्पताल खोलें। कहते हैं ना जहाँ चाह वहाँ राह और इस कहावत सच कर दिखाया डॉ श्याम ने। डॉ श्याम वाकई बधाई के पात्र हैं. **
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अमरीकी सैनिकों के क़ातिल डॉक्टर को सजा-ए-मौत
ह्यूस्टन : अमेरिका की एक सैन्य अदालत ने सेना के साइकोलॉजिस्ट मेजर निदाल हसन को मौत की सजा सुनाई है. हसन को टेक्साल सैन्य अड्डे पर गोलीबारी करने के जुर्म में अगस्त 2013 में मौत की सजा सुनाई गई. हसन की उम्र 50 साल है वो पहले ऐसे अमेरिकी सैनिक हैं जिन्हें सेवा में रहते हुए मौत की सजा सुनाई गई है. गौरतलब है कि पांच नवंबर 2009 को हसन ने टेक्सस हवाई अड्डे पर गोलीबारी की थी जिसमें 13 लोग मारे गए थे जबकि इस घटना में 30 घायल हुए थे. सेना के 13 शीर्ष अधिकारियों की एक ज्यूरी ने हसन को हत्याकांड का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई. हसन को सेना से बर्खास्त कर दिया गया है. उसे कंसास स्थित फोर्ट लीवनवर्थ जेल में भेजा जाएगा. अभियोजकों ने दलील दी थी कि अमेरिकी मूल के मुस्लिम हसन ने अपनी कंट्टर धार्मिक विचारधारा के चलते ही सैनिकों पर हमला किया था.
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क़ातिल डॉक्टर को उम्रकैद
डॉक्टर को जमीन पर भगवान का अवतार माना जाता है परन्तु एक ब्रिटिशडॉक्टर हैराल्ड शिपमैनअपने मरीजों के लिए ही काल बन गया।माना जाता है कि सीरियल किलर डॉक्टर शिपमैन ने अपने 23 साल के प्रोफेशनल कैरियर में लगभग 250 मरीजों को मार्फीन की हैवीडोज देकर मौत के घाट उतार दिया। शिकार हुईं महिला मरीज इस केस में सबसे रोचक बात यह थी कि डॉक्टर के शिकार मरीजों में सभी मरीज महिलाएं थी जिन्हें कोई भी खास बीमारी नहीं थी।प्रत्येक महिला डॉ. हैरॉल्ड से मिलने के बाद अचानक ही मृत पाई जाती थी। उसके इस कुकृत्य का का पता उसके आखिरी शिकार की मौत के बाद चला जब मृतक महिला की बेटी ने उस पर शक जाहिर करते हुएपुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। मृतक महिलाओं की संपत्ति हड़पने के लिए करता था हत्या पुलिस द्वारा की गई जांच में पता चला कि वह शिकार महिलाओं की झूठी वसीयत बनाकर उनकी संपत्ति हड़पने का प्रयास भी कियाकरता था। सजा सुनाते हुए जज थायने फोब्र्स ने कहा, "हर मृतकआपका मरीज था। आपने अपने हुनर का इस्तेमाल करते हुए हर मरीज की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी जबकि आपको उन्हें मौत सेबचाना था।" कोर्ट ने आरोपी डॉक्टर को सजा सुनाते हुए पुलिस को उसके सभी मृतक मरीजों के बारे में जांच करने का भी आदेश दिया। 13 अप्रेल 2004 को उक्त वहशी डॉक्टर की मौत हो गई. **
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जब ढंग से की दो बातें ही इलाज होता है
(आलेख आभार: डॉ. प्रवीण चोपड़ा) मैं अकसर सोचता हूं कि उम्र के साथ बहुत सी तकलीफ़ें ऐसी आ जाती हैं ( चलिये, हम यहां कैंसर की बात नहीं करते) ---जिन तकलीफ़ों का कोई विशेष इलाज होता ही नहीं है। हर डाक्टर के पास ऐसे ही कईं मरीज़ रोज़ाना आते हैं जिस के बारे में उसे बिलकुल अच्छी तरह से पता है कि इस अवस्था के बारे में कुछ नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी मरीज़ का मन बहलाये रखना भी बहुत बड़ा काम है। चलिये, एक उदाहरण लेते हैं ओसटियो-आर्थराइटिस की जो कि बड़ी उम्र में लोगों को ओसटियोपोरोसिस के साथ मिल कर बहुत ही ज़्यादा परेशान किये रहती है। चलने में दिक्कत, घुटने में बेहद दर्द ------अब ये तकलीफ़ें ज़्यादातर केसों में तो इसलिये होती हैं कि लोग विभिन्न कारणों की वजह से अपने शरीर की तरफ़ कईं कईं साल तक ध्यान दे ही नहीं पाते --- और बहुत से केसों में यह उम्र का तकाज़ा भी होता है। मुझे बहुत साल पहले एक हड्डी रोग विशेषज्ञ का ध्यान आ रहा है जो कि बड़ी-बुजुर्ग महिलाओं को एक झटके में बड़े आवेग से कह दिया करता था कि अब उन के घुटनों में ग्रीस खत्म हो चुकी है, कुछ नहीं हो सकता अब इन हड्डियों का। इतना ब्लंट सा जवाब सुन कर अकसर मैंने देखा है कि लोगों का मन टूट जाता है। >>>
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इस का यह मतलब भी नहीं कि इन बुजुर्ग मरीज़ों को झूठी आशा दे कर, रोज़ाना अच्छी अच्छी बातों की मीठी गोलियां दे देकर उन से पैसे ही ऐंठते रहें ----या और नहीं तो वही एक्स-रे, वही सीटी स्कैन करवा कर उन की जेबें हल्की कर रहें।
जो मैं कहना चाह रहा हूं वह बस इतना ही है कि मरीज़ की स्थिति कैसी भी हो ----उस को हम ठीक ठीक बता तो दें लेकिन अगर आवेग में आकर बिना सोचे समझे बडे़ स्पष्टवादी बनते हुये सब कुछ एक ही बार में कह देते हैं तो मरीज़ का मन बहुत दुःखी होता है। दवाईयों ने तो जो काम करना होता है वह भी नहीं कर पाती ----क्योंकि मरीज़ का मन ठीक नहीं है। लेकिन अहम् बात यह है कि अगर मरीज़ का मन ठीक नहीं है, डाक्टर की बात से वह खफ़ा है तो उस के शरीर की जो प्राकृतिक मुरम्मत करने की क्षमता ( natural reparative capacity) है , कमबख्त वह भी मौके का फायदा उठा कर हड़ताल कर देती है। बहुत सी तकलीफ़ें ऐसी हैं जिन का कोई सीधा समाधान है ही नहीं ----- बस, मरीज़ का अगर मन लगा रहे तो यही ठीक होता है। बाकी, आज लोग काफ़ी सचेत हैं उन्हें भी पता होता ही है कि फलां फलां तकलीफ़ें उम्र के साथ हो ही जाती हैं और ये सारी उम्र साथ ही चलेंगी लेकिन फिर भी वे डाक्टर के मुंह से कुछ भी कड़े निराशात्मक शब्द सुनना नहीं चाहते। >>>
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अगर ऐसे ओसटियोआर्थराइटिस के केस में डाक्टर इतना ही कह दे कि आप अपना थोड़ा वज़न कम करें , थोडा़ बहुत टहलना शुरू करें ---- खाने पीने में दूध-दही का ध्यान रखें ---- तो मरीज़ बड़े उत्साह के साथ इन बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करने लगता है। और साथ में अगर योग, प्राणायाम् के लिये भी प्रेरित कर दिया जाये तो क्या कहने !! ठीक है, वह दर्द के लियेहड्डियों पर लगाने वाली ट्यूब, कभी कभार या नियमित विशेषज्ञ की सलाह से कोई दर्द-निवारक गोली या वह गर्म पट्टी ----ये सब अपना काम तो करती ही हैं लेकिन सब से तगड़ा काम होता है डाक्टर के शब्दों का जिन्हें बहुत ही तोल-मोल के बेहद सुलझे ढंग से निकालना निहायत ही ज़रूरी है।
बस और क्या लिखूं ? ---पता नहीं इन बातों का सुबह सुबह कैसे ख्याल आ गया ---- कहना यही चाह रहा हूं कि डाक्टर और मरीज़ के बीच का वार्तालाप बेहद महत्वपूर्ण है ---इन में एक एक शब्द का चुनाव बहुत ही सोच समझ कर करेंगे तो ही मरीज़ों का मनोबल बढ़ेगा -------------वरना वे हमेशा बुझे बुझे से हर हफ्ते डाक्टर ही बदलते रहेंगे जब तक कि वह किसी आस पड़ोस के बहुत ही मृदुभाषी नीमहकीम के ही हत्थे नहीं चढ़ जायेंगे जो कि बातें तो शहद से भी मीठी करेगा लेकिन खिलायेगा उन को स्टीरॉयड जो कि इन मरीज़ों का शरीर दिन-ब-दिन खोखला कर देती हैं। जब छोटे से तो बड़े-बुजुर्गों से सुनते थे, अपने हिंदी और संस्कृत के मास्टर जी अकसर कबीर जी, तुलसी दास के दोहे पढ़ाते हुये यह बताया करते थे कि वाणी कैसी हो, इस पर क्यों पूरा नियंत्रण हो ----------और आज इतना साल चिकित्सा क्षेत्र में बिताने के बाद यही सीखा है कि सही समय पर कहे गये संवेदना से भरे दो मीठे शब्द कईं बार इन दवाईयों से भी कईं गुणा ज़्यादा असर कर देते हैं। मेरी अभी तक की ज़िंदगी का यही सारांश है। आप का इस के बारे में क्या ख्याल है ? **
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डॉ श्याम बेडसे जी की कहानी प्रेरणादायक है सच जहाँ चाह है वहां राह अपने आप मिल ही जाती है जो खुद आपनी स हायता करते हैं उन्हें रब भी साथ देता है ...
बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी इतनी रोचक बातें शेयर करने केलिए ... |
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धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी. मुझे ख़ुशी है कि आपको यह सूत्र पसंद आया.
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