04-12-2014, 10:35 AM | #1 |
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एक पुष्प की कहानी
महका पुष्प जब संध्या की बेला में एक दीप जला..एक दीप जला तब खिलखिला उठे रंग मंच के हर वक्ता .. पुष्प अपनी सुंगंध से महकाए है सारा जहां कभी हवा के झोंकों ने हिला दिया उस पुष्प का सारा जहाँ पर आ गई तब भी बहार उस पुष्प के यहाँ , क्यूंकि अब थी एक खुश्बू उस पुष्प केयहाँ अब तो आ गई बहारें और खिल उठा सारा जहाँ चुभते काँटों में रहकर भी वो पुष्प सदा हसता ही रहा , रहा काँटों के मध्य .. सही आंधियों की झंझावत सहा कभी धुप का ताप, सही कभी बर्फीली सर्द हवा फिर भी अडिग रहा आपने इरादों पर वो बन गया देवो पर चढ़कर उनके सर की शोभा सर देवों के चढकर जब देवो के सर पर सुख गया तब जाते जाते पुष्प दे गया एक सीख इस जहाँ को ,. सिख लो मुश्किलों में भी संभलना . बन जाओ कोमल होकर भी कठोर और पा लो तुम अपना जहाँ .. Last edited by soni pushpa; 08-12-2014 at 08:50 PM. |
04-12-2014, 10:25 PM | #2 |
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Re: एक पुष्प की कहानी
भाषा की छोटी मोटी त्रुटियों के बावजूद यह उस पुष्प की कहानी पूरी ईमानदारी से कह पाने में समर्थ है जिसने कदम कदम पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष किया. वह न सिर्फ इस लड़ाई में विजयी हुआ बल्कि उसे अपने जीवन की खुशबू भी मिली और खुशियाँ भी. पुष्पा सोनी जी, आपको इस कविता के लिए बधाई भी देना चाहता हूँ और धन्यवाद भी.
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05-12-2014, 12:35 PM | #3 |
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Re: एक पुष्प की कहानी
बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी ,आपने मेरी कविता"एक पुष्प की कहानी "पर सुन्दर प्रतिक्रिया दी है मै आपकी अभारी हूँ .. .
Last edited by soni pushpa; 05-12-2014 at 12:37 PM. |
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