04-03-2015, 07:42 PM
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तेल का खेल
वर्ष 1962 में तिब्बत पर चीनी कब्ज़े के मामले पर चुप बैठने वाला अमेरिका कुवैत पर इराक़ी कब्ज़ा होने पर चुप न बैठ सका और तुरन्त हस्तक्षेप करके कुवैत को इराक़ के कब्ज़े से मुक्त कराया। कुवैत को मुक्त कराने के बाद भी अमेरिका चुप नहीं बैठा रहा और तमाम दाँव-पेंच चलकर इराक़ी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करके ही दम लिया। कुवैत कब्ज़े के मामले में रही अमेरिका की रुचि तिब्बत कब्ज़े के मामले में नहीं रही, क्योंकि कुवैत तेल सम्पन्न देश है और अमेरिका ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व के लिए तेल ही जीवन है। कुवैत के तेल के कुँवों पर इराक़ का कब्ज़ा अमेरिका को खलने लगा था। तिब्बत बर्फ़ सम्पन्न देश है। बर्फ़ की ज़रूरत सिर्फ़ गर्म देशों को ठण्डा पेय बनाने के लिए होती है। अमेरिका को बर्फ़ की कोई ज़रूरत नहीं, क्योंकि अमेरिका में खुद इतनी बर्फ़ है कि वह ग़रीब गर्म देशों को मुफ़्त में बर्फ़ की सप्लाई करके दान-पुण्य कर सकता है! वैसे भी ग़रीब देश बर्फ़ का आयात नहीं करते और बड़े-बड़े प्लाँट लगाकर खुद बर्फ़ बना लेते हैं। आजकल तो घर-घर में फ्रि़ज़ लगाकर घरेलू स्तर पर भी बर्फ़ का उत्पादन किया जाता है। इसीलिए तिब्बत के ठण्डे-ठण्डे बर्फ़ में किसी देश की कोई रुचि कभी नहीं रही। आज का यह कटु सत्य है कि किसी को लोग तभी तक पसन्द करते हैं जब तक उनका कोई न कोई ‘स्वार्थ सिद्ध’ होता रहे। पुरातन काल भी इस ‘स्वार्थ सिद्धि' के सूत्र से कभी अछूता नहीं रहा। रामचरितमानस में बालि से युद्ध करके सुग्रीव को राजपाठ दिलाने के बाद जब सुग्रीव ने राम को विस्मृत कर दिया तो राम ने सारी मित्रता भूलकर क्रोधपूर्वक कहा- ‘‘क्या मुझे उसी बाण से सुग्रीव को भी मारना पड़ेगा जिस बाण से मैंने बालि को मारा है?’’ देखें तुलसीकृत रामचरितमानस, किष्किन्धा काण्ड- ‘जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।।3।।’ यद्यपि राम के इस क्रोध को लीला कहकर न्यायसंगत सिद्ध कर दिया गया, किन्तु उसके बाद भी लक्ष्मण ने सुग्रीव के नगर में प्रवेश करने बाद धनुष चढ़ाकर क्रोधपूर्वक कहा- ‘‘नगर को जलाकर अभी राख कर दूँगा।’’ तब नगर भर को व्याकुल देखकर बालिपुत्र अंगदजी उनके पास आए। देखें तुलसीकृत रामचरितमानस, किष्किन्धा काण्ड- ‘धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार। ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार।।19।।’ स्पष्ट है- तिब्बत के बर्फ़ में किसी देश की कोई रुचि न होने के कारण सभी देश चुपचाप बैठे रहे। तिब्बत में सोने की खानें होतीं तो सभी देश एक साथ मिलकर समवेत स्वर में गला फाड़कर चिल्लाते- ‘तिब्बत के साथ अन्याय हो रहा है!’’ यही कारण है- हिन्दी फीचर फि़ल्म ‘शोले’ में अपना खौफ दिखाने के लिए डाकू गब्बर सिंह का चर्चित डायलॉग ‘...सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा।’ अब पुराना पड़ चुका है। अब माँए अपनी बेटियों को डराने के लिए कहती हैं- ‘‘बेटी, ठीक से फ़ेस वाश करके अपना ऑइली चेहरा साफ कर ले। नहीं, अमेरिका आकर तेरे चेहरे के तेल पर हमला कर देगा!’’ (c-ws1)
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