04-06-2015, 02:38 PM | #1 |
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हिचकॉक के चमचे
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04-06-2015, 02:46 PM | #2 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
हिचकॉक पर हमारा धुआँथार लेख पढ़कर हिचकॉक के प्रसंशक निःसन्देह हमें हिचकॉक का बहुत बड़ा चमचा समझकर हमसे जल-भुन गए होंगे तथा अपने मन में यह सोचकर अपना दिल छोटा किए बैठे होंगे कि शायद हमने हिचकॉक की सारी फिल्में देख डाली होंगी और वो नहीं देख पाए, किन्तु ऐसा सोचना महज एक कपोल-कल्पना है। अब हम आपको वह राज़ बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर खुशी के कारण आपका दिल फूलकर चौड़ा हो जाएगा। सच तो यह है कि हमने हिचकॉक की एक भी फिल्म नहीं देखी। कैसे देखते? वर्ष 1899 में जन्मे हिचकॉक की अन्तिम फिल्म 'फैमिली प्लॉट' वर्ष 1976 में लोकार्पित हुई थी और उस समय हमारी आयु इतनी कम थी कि हम बमुश्किल बड़ी मेहनत करके बच्चों की उल्टी-सीधी छोटी सी कहानी लिख लेते थे और अंक-ज्योतिष के फण्डे को समझने में सफल हो गए थे। हमारी आयु जब अँग्रेज़ी फिल्म देखने योग्य हुई तो अँग्रेज़ी फिल्म के मैदान में हिचकॉक के बाप आ चुके थे। पूज्य पिताश्री हिचकॉक के प्रसंशक थे या नहीं- यह बात तो मुझे नहीं पता, किन्तु इतना ज़रूर पता है- वे अपने चैम्बर में नर्गिस की फोटो लगाए थे। उस समय हमारा फिल्मी ज्ञान इतना शून्य था कि हमने पिताश्री से पूछा- 'यह किसकी फोटो है?' पिताश्री ने बताया- 'हीरोइन नर्गिस की फोटो है।' अचम्भित होकर हमने तुरन्त अगला प्रश्न दाग दिया- 'यह हीरोइन क्या होता है?' पिताश्री ने हमारी शंका का समाधान करते हुए बताया- 'फिल्मों में काम करने वाली लड़कियों को हीरोइन कहते हैं।' हमने तुरन्त अगला प्रश्न पूछा- 'ये फोटो आपने यहाँ क्यों लगा रखी है?' अब पिताश्री कैसे बताते कि वे नर्गिस के फैन हैं। बला टालने के उद्देश्य से उन्होंने कहा- 'चैम्बर में नर्गिस की फोटो लगाने से कानून की किताबें जल्दी याद होती हैं।' हमारी बालक-बुद्धि की पकड़ में तत्काल यह बात आ गई कि पिताश्री नर्गिस की फोटो के अद्भुत पॉवर के कारण कानून की मोटी-मोटी किताबें बड़ी आसानी से याद कर लेते हैं। हमने चैम्बर में लगी नर्गिस की फोटो को वक्र दृष्टि से देखा। अगले ही दिन चुपके से नर्गिस की फोटो को पिताश्री के चैम्बर से उतारकर अपने स्टडी-रूम में स्थापित करके हम एलिफैण्ट और अम्ब्रैला की भयानक स्पेलिंग रटने में जी-जान से जुट गए। पिताश्री जब नर्गिस की फोटो को वापस अपने चैम्बर में ले जाने लगे तो हमने रो-रोकर नर्गिस को अपने स्टडी-रूम से जाने न दिया। पिताश्री को कानून की मोटी-मोटी किताबें याद कराने वाली नर्गिस अब हमारी पढा़ई-लिखाई के काम आने लगी। तदुपरान्त वर्षों तक हम पढ़ाई में अव्वल आने का कारण नर्गिस की फोटो का चमत्कारी प्रताप समझते रहे। अब तो आप यह बात अच्छी तरह से समझ ही गए होंगे कि हिचकॉक नर्गिस के ज़माने के थे और इतने पुरातनकालीन हिचकॉक का चमचा बनकर उनके नाम से गाना-बजाना मूर्खता नहीं तो और क्या है? अतः हमें हिचकॉक का चमचा समझना कहीं से न्यायसंगत न होगा।
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04-06-2015, 03:24 PM | #3 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
चलिए, यदि हम आपका यह तर्क मान भी लें कि सस्पेन्स और थ्रिल को सटीकता और सरलता के साथ परिभाषित करने में हिचकॉक का नाम सदा से अग्रणी रहा है तो शायद आपने अभी हमारी परिभाषा नहीं पढ़ी है जिसमें हमने असमंजस और रोमांच के साथ-साथ 'बोर' को भी सरलता के साथ परिभाषित कर दिया है। हमारे शब्दों में- 'जब दर्शक फिल्म देखते-देखते साँस रोककर अपनी सीट से चिपक जाएँ तो उसे सस्पेन्स अर्थात् असमंजस कहते हैं और जब दर्शक साँस छोड़कर अपनी सीट से उछल जाएँ तो उसे थ्रिल अर्थात् रोमांच कहते हैं। जब दर्शक निर्माता और निर्देशक को गाली देते हुए अपनी सीट छोड़कर सिगरेट, बीड़ी और सिगार पीने के लिए हॉल से बाहर निकल जाएँ तो उसे 'बोर' कहते हैं।' देखा आपने- कितनी सरल परिभाषा है! फिल्म देखते समय बस आपको यह गिनना हेै कि कितनी बार आप अपनी सीट से चिपके और कितनी बार अपनी सीट से उछले तथा कितनी बार सीट छोड़कर हॉल से बाहर गए? अब रिक्शेवाला भी आसानी से बता सकेगा- एक फिल्म में कितना सस्पेन्स, कितना थ्रिल और कितना बोर था?
हो सकता है- हमारे द्वारा दी गई परिभाषा से कुछ लोग सहमत न हों और हिचकॉक की दुम पकड़कर चलना ही न्यायसंगत समझते हों। जिद्दी स्वभाव के ऐसे महानुभावों से तर्क के साथ हमारा यक्ष-प्रश्न यह है कि 'क्या सस्पेन्स के महारथी हिचकॉक भारतीय फ़ीचर फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली 'लव-स्टोरी' के भी महारथी थे? नहीं न? एक भारतीय लेखक अँग्रेज़ी फ़िल्मों में निहित असमंजस और रोमांच की गणित को बड़ी आसानी से समझ सकता है, किन्तु क्या एक अँग्रेज़ लेखक भारतीय फ़ीचर फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली 'लव-स्टोरी' के गुणा-भाग को ठीक-ठीक समझ सकता है? नहीं न? अरे, उनके देश का कल्चर और इमोशन अलग है और हमारे देश का कल्चर और इमोशन अलग है। भारतीय 'लव-स्टोरी' के द्वन्द्व अर्थात् 'कॉन्फ्लिक्ट' में इतने अधिक पेंच हुआ करते हैं कि हिचकॉक की बात छोड़िए, कहानी लेखन विधा पर निरन्तर सेमिनार आयोजित करने वाले और कहानी लेखन शिल्प पर अद्वितीय अँग्रेज़ी पुस्तक 'स्टोरी' लिखने वाले महारथी राबर्ट मैकी का दिमाग भी चकरा जाए।' कुछ वर्षों पूर्व हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'जब तक है जान' देखकर एक मित्र ने हमसे पूछा- 'अगर फ़िल्म के अन्त में कैट की जगह अनु को लाना होता तो स्टोरी में क्या फेर-बदल किया जाता?' शायद मित्र अनु के प्रसंशक थे। हमने जवाब दिया- 'इसके लिए हमें कैट के लिए बरकरार आडियन्स सिम्पथी को जड़ से खत्म करना होगा।' मित्र ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- 'वह कैसे?' हमने जवाब दिया- 'फ़िल्म में अनु का कहानी के हीरो खान से मिलना महज एक संयोग था। यदि अनु कैट की सहेली होती और कैट कोई ऐसी योजना बनाकर अनु को खान के पास भेजती जो दर्शकों की नज़रों में स्वीकार्य न होती और अनु खान से प्रेम करने लगती तो इसकी जिम्मेदार कैट ही होती, क्योंकि अनु को खान के पास भेजने वाली कैट ही थी। ऐसी हालात में कैट के लिए पूर्वस्थापित आडियन्स सिम्पथी खुद-ब-खुद ख़त्म हो जाएगी और जिस हीरोइन के साथ आडियन्स सिम्पथी न हो, उसे कहानी से निकालना बड़ा आसान होता है।' मित्र ने दिमाग़ का घोड़ा दौड़ाते हुए प्रसन्नतापूर्वक कहा- 'समझ गया। ठीक वैसे ही जैसे हिन्दी फ़िल्म बॉडीगार्ड में कहानी की हीरोइन करीना अपनी सहेली माया को छाया बनाकर सलमान के पास भेजती है।' हमने बताया- 'उस फिल्म में माया को छाया बनाकर सलमान के पास भेजने के पीछे एक न्यायसंगत कारण था, किन्तु माया का खुद छाया बनकर अपनी सहेली करीना को धोखा देने के कारण आडियन्स सिम्पथी करीना के लिए हमेशा बनी रही। यदि यही कारण न्यायसंगत न हो तो आडियन्स सिम्पथी करीना की ओर से खत्म होकर माया की तरफ चली जाएगी।' मित्र ने उत्सुक होकर पूछा- 'अनु अगर खान से प्रेम करने लग जाए तो इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा? अनु को खान के पास भेजने का कारण भले ही न्यायसंगत न रहा हो, किन्तु भेजा तो कैट ने ही था?' हमने बताया- 'देखिए, अगर कहानी में दो हीरोइनें हाें तो प्रेम में फाउल करने वाली हीरोइन को ही कहानी से आउट समझा जाता है। अगर कहानी में कैट ने अपनी मूर्खता के कारण अनु को खान के पास भेजा होगा तो आडियन्स सिम्पथी दोनों हीरोइनों की ओर बराबर मात्रा में रहेगी। यदि ऐसा होता है तो कहानी का मुख्य कॉन्फ्लिक्ट 'कैट की अनोखी क़सम' न होकर 'कैट की अनोखी मूर्खता' हो जाएगी।' मित्र ने कहा- 'इस तरह तो एक हीरो के लिए दोनों हीरोइनें आपस में लड़ने लग जाएँगी?' हमने बताया- 'अगर कहानी में दोनों हीरोइनों के बीच साधारण दोस्ती दिखाई जा रही है तो दोनों हीरोइनें आपस में लड़ने लग जाएँगी, किन्तु कहानी में अगर दोनों हीरोइनों के बीच पक्की दोस्ती दिखाई जा रही है तो दोनों हीरोइनें आपस में लड़ने की जगह गेंद हीरो के पाले में डाल देंगी। अब हीरो जिसे चाहे चुने।' मित्र ने और अधिक उत्सुक होकर पूछा- 'कहानी का हीरो किसे चुनेगा?' हमने कहा- 'यह तो पूरी कहानी लिखते वक्त ही सही-सही पता चलेगा। अभी तो फिलहाल आप तेल बेचते समय कृपया डिस्टर्ब न करें।' मित्र मुँह बनाकर चले गए। देखा आपने- तेल बेचते-बेचते कितनी आसानी से मित्र की शंका का समाधान कर दिया। अब आप ही बताइए- 'कुत्ता-कल्चर' वाले अँग्रेज़ लेखकों में क्या इतना दम है कि भारतीय 'लव-स्टोरी' के टेढ़े कॉन्फ्लिक्ट को कुशलतापूर्वक हैंडल कर सकें? इनकी लव-स्टोरी देखना हो तो 'अलेक्जेन्ड्रा' देखिए, 'पॉइन्ट ऑफ़ सिडक्शन-iii' देखिए। भारतीय लव-स्टोरी और अँग्रेज़ों की लव-स्टोरी में आपको ज़मीन-आसमान का अन्तर साफ दिखाई देगा। अब यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गई कि हिचकॉक, राबर्ट, रूज़वेल्ट, सेक्सपियर, कालिदास जैसे लोगों का चमचा बनने से कोई फायदा नहीं। अरे, चमचा ही बनना है तो जे० के० रोलिंग का बनिए- वाह-वाह, क्या लिखती हैं! तसलीमा नसरीन का बनिए- वाह-वाह, क्या लिखती हैं! एलिस बेल का बनिए- वाह-वाह, क्या लिखती हैं! एलिज़ा का बनिए- वाह-वाह, क्या लिखती हैं! काटे फॉक्स का बनिए- वाह-वाह, क्या लिखती हैं!
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04-06-2015, 06:19 PM | #4 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
महिलाओं ने हमारा लेख पढ़कर चैन की साँस लिया होगा, क्योंकि लेख में कहीं भी 'चमची' शब्द का उल्लेख नहीं था!
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04-06-2015, 07:55 PM | #5 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
बहुत खूब, रजत जी. पूरे आलेख में आपने रोचकता बनाये रखी. कथावस्तु में आने वाले अनेक पात्रों और घटनाओं के बावजूद सूत्रधार ने स्थिति को सम्हाले रखा. कुछ वस्तुओं का रोल भी काफी उल्लेखनीय रहा, जैसे- नर्गिस की तस्वीर. धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 04-06-2015 at 08:06 PM. |
04-06-2015, 09:15 PM | #6 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
पठनीय प्रस्तुति। धन्यवाद।
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05-06-2015, 08:35 AM | #7 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
आ गया " रजत ब्राण्ड " लेख!!!
नर्गिसजी वाला किस्सा सचमुच लाजवाब है। हंसते हंसते हम तो लोटपोट हो गए! स्कूल में वह 'भयंकर स्पेलिंग' याद न रखने के लिए मुझे १०० -१०० बार उन्हें लिखने की सज़ा दी गई थी । आपने हिन्दुस्तानी और ईंग्लिशतानी फिल्मों के बीच जो मुख्य अंतर का उल्लेख किया है...वह मेरे विचारों से बिलकुल मेल खाता है। वे लोग प्रेक्षकगण को पकडे रखने के लिए या अपनी रचनाओं को परफेक्ट बनाने के लिए 'कोई भी' हद तक जा सकतें है...जब की हम आज भी चुंबन द्रश्य से आगे बढ नहीं पाते जैसा देविकारानी जी ने आज से अस्सी साल पहले दिया था राज कपूर जी या मोना चोप्रा जी के अलावा एसे काम कोई कर नहीं सका। सिर्फ बी ग्रेड बनाने वालों ने ही महेनत की है। हमने ईसी लिए तो सनी लिओनी को भारत बुलाया था की ईस हिन्दी फिल्मों की परंपरा को आगे बढा सके...लेकिन शायद उसने भारत का पानी पीने के तुरंत बाद ही मना कर दिया होगा। बेचारी एकता कपूर के सपने धरे के धरे ही रह गए। फिल्में हो या हकीकत...भारत में प्रेम का ही स्थान उपर रहेगा, सिर्फ कभी कभी उफाल आते जाते रहते है। मैं फिल्मों का शौकीन हुं और यह आपको मेरे ईस रिप्लाय में दिख जाएगा...और मुझे यकीन है की आपने उस अंग्रेज से पी-यु-टी वाला सवाल पुछा होगा बहेतरीन लेख, धन्यवाद! Last edited by Deep_; 05-06-2015 at 08:40 AM. |
05-06-2015, 12:06 PM | #8 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
धन्यवाद २जनीश जी।
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05-06-2015, 05:08 PM | #9 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
बहुत मजेदार रजत भाई !!
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06-06-2015, 10:04 AM | #10 |
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Re: हिचकॉक के चमचे
धन्यवाद, अलैक जी।
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