28-06-2017, 01:39 AM | #1 |
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छोटी सी कश्ती
न कर बैठूं कोई अपराध जब मन की हो अधीरता न जाऊं आड़े टेढ़ रास्तों पर मैं ओ मेरी किस्मत के बनाने वाले , बस बिनती तुझसे है इतनी चले आना आके तू सब संभाले न छद्मवेशी इस दुनिया का छद्म एहसास और, न कभी खोना चाहूँ उन छद्म एहसासो की सांसों में न पाए ज़िन्दगी के ये झरोखे किसी ऐसे एहसास को जिनमे न सच का साथ और न कोई विश्वास हो। न घिर जाऊ कभी आकर्षणों के भरम में न जगे प्यास कभी उस चकाचौंध के रमण में न कर बैठूं गुनाह कोई लोभ में न दिल दुखे कीसी का किसी मोह में न चाह हो धन पराया हड़पने की हे ईश्वर गर भटक भी जावूं राहें , मंज़िले मैं अपनी आकर संभाल लेना ये छोटी सी कश्ती मेरी। Last edited by soni pushpa; 28-06-2017 at 01:49 AM. |
29-06-2017, 08:32 AM | #2 |
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Re: छोटी सी कश्ती
दुनिया के सभी आडंबर व माया मोह व्यक्ति को भटका देते है. ऐसे में आपकी प्रार्थना के शब्द आत्मिक बल का आह्वान करते हैं. बहुत सुंदर कविता. फ़ोरम पर इसे शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
07-07-2017, 01:05 AM | #3 | |
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Re: छोटी सी कश्ती
Quote:
कविता को लिए हार्दिक आभार सह धन्यवाद भाई .. जी भाई प्रर्थना इंसान को सदा ही सही राह बतलाती है और ईश्वर का सान्निध्य करवाती है। |
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