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#1 |
Diligent Member
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![]() ■■■■■■■ हमारी जान जाती है न जाती है ये महँगाई नई सरकार बनते फिर रुलाती है ये महँगाई यहाँ हर बात में यारों ख़ुशी हम ढूँढ लेते हैं मगर सर दर्द रोजाना बढ़ाती है ये महँगाई चलन अब बंद करना है रिवाजों में दिखावे का चढ़ाते लोग हैं लेकिन गिराती है ये महँगाई कमाई आजकल ईमान वालों की घटी है पर ठगों की राह में मखमल बिछाती है ये महँगाई कहीं 'आकाश' जाओ तुम मिलेगा कुछ नहीं सस्ता सभी को एक उँगली पर नचाती है ये महँगाई ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 17/05/2022 ■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरनाथ जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो- 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 19-05-2022 at 07:59 PM. |
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