19-09-2013, 11:22 PM | #151 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
पापा को मम्मी से, मम्मी को पापा से प्यार है, प्यार है. पापा मम्मी मिलते हैं, चुपके-चुपके हँसते हैं जाने क्या-क्या कहते हैं, बातें करते रहते हैं |
19-09-2013, 11:30 PM | #152 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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दुश्मन को न देखो नफरत से शायद वो मुहब्बत कर बैठे |
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20-09-2013, 07:59 AM | #153 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा
ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा दिल में हैं धड़कनें धड़कन में है सदा ठहरो ज़रा ... समझो ज़रा समझो ज़रा क्या मुश्किलें हैं मेरी मजबूरियाँ हैं क्या ठहरो ज़रा ... मेरी बात जो न मानो मौसम को तो पहचानो मौसम तो पागल सा है मौसम का भरोसा क्या है ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ओय ओय खुश्बू का तो कहना सुन लो ठहरो ये कलियाँ चुन लो कलियाँ तो होंगी कल भी कल भर लूँगी आँचल भी ओहो हो अ आ ठहरो ज़रा ... कुछ देर तो रुक जाओ ना बैठो न पास आओ ना घबराया मेरा दिल है रुकना मेरा मुश्किल है ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो ज़रा ओय होय ऐसे जो घबराओगी कल कैसे आ पाओगी वादा मैं अपना निभाऊँगी चाहें जो भी हो जाए आऊँगी हाँ हाँ ओ ओ ठहरो ज़रा ...
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
20-09-2013, 09:25 PM | #154 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
सुन्दर गीत / कविता के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र.
चलिए अन्ताक्षरी की ओर आते हैं: रगे-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता |
21-09-2013, 12:12 AM | #155 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है। उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना मकसूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है। – सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं बुत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मरज़ी है। – ना-तजर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने, पूछो जो कभी पी है हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है |
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21-09-2013, 12:13 AM | #156 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तर्के-मुद्दआ कर दे ऐने-मुद्दआ हो जा।
शाने-अबद पैदा कर मज़हरे-ख़ुदा हो जा॥ उसकी राह में मिटकर, बे-नियाज़े-ख़लक़त बन। हुस्न पर फ़िदा होकर हुस्न की अदा हो जा॥ तू है जब पयाम उसका फिर पयाम क्या तेरा। तू है जब सदा उसकी, आप बेसदा हो जा॥ आदमी नहीं सुनता आदमी की बातों को। पैकरे-अमल बनकर ग़ैब की सदा हो जा॥ |
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22-09-2013, 10:18 PM | #157 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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उसकी दीवार का सिर से मेरे साया न गया |
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23-09-2013, 10:17 PM | #158 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ये दिल तुम बीन कही लगता नहीं, हम क्या करे तसव्वुर में कोइ बसता नहीं, हम क्या करे तुम ही कह दो अब ए जाना-ये-वफ़ा हम क्या करे...............
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23-09-2013, 11:04 PM | #159 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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24-09-2013, 12:01 AM | #160 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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गुम है किसी के प्यार में, दिल सुबह शाम !.... पर तुम्हे लिख नहीं पाऊं, मैं उसका नाम !...............
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