02-10-2011, 08:46 AM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
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जिद्दी मन को और न भाये
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी . थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी . आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी . जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी . रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी . दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी . प्यार का कर्जा एक बार ले , चुका रहा ता उम्र उधारी . प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी . बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी . मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी . इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी . ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बाँह में नारी . जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी . रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड-२,गोमती नगर,लखनऊ . (शब्दार्थ ~~ कालाहारी = प्रतिकूल परिस्थितियों वाला अफ्रीकी रेगिस्तान ) Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 02-10-2011 at 10:45 AM. |
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