01-05-2013, 06:18 PM | #21 |
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Re: संत दोहावली
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01-05-2013, 07:29 PM | #22 |
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Re: संत दोहावली
एक कठोर सत्य को रहीमदास जी ने कितने सरल शब्दों में परिभाषित किया है ............ आभार बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
01-05-2013, 11:36 PM | #23 |
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Re: संत दोहावली
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय.
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. अर्थ : मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा.
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01-05-2013, 11:38 PM | #24 |
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Re: संत दोहावली
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय.
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय. अर्थ : खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है. रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है.
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02-05-2013, 12:08 PM | #25 |
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Re: संत दोहावली
जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥ कबीर दास जी कहते हैं जहाँ पर दूसरो के प्रति दया भाव हैं वहां ही धर्म पनपता हैं वो ही धर्म का स्थान हैं और जहाँ लोभ और लालच हैं वहां पाप कर्म होना निश्चित हैं जहाँ पर क्रोध ने अपना अधिपत्य कर लिया हो वहां विनाश निश्चित हैं और जिस मनुष्य ने क्षमा को अपने जीवन में स्थान दिया हैं वहां स्वयं परमात्मा विराजमान हैं .
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02-05-2013, 12:27 PM | #26 |
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Re: संत दोहावली
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन.
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन. अर्थ : वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है. अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता. अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है.
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05-05-2013, 11:51 PM | #27 |
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Re: संत दोहावली
रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि
सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि कविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर उधर कूदने फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है.जैसे किसी पौधे को ज्यादा पानी से सिचोंगे तो उसको हानि ही होनी हैं
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05-05-2013, 11:55 PM | #28 |
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Re: संत दोहावली
पंख होत परबस पयों, सूआ के बुधि नांहि।
अंकिल बिहूना आदमी, यौ बंधा जग मांहि।। संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं बुद्धिमान पक्षी जिस तरह पंख होते हुए भी पिंजरे में फंस जाता है वैसे ही मनुष्य भी मोह माया के चक्क्र में फंसा रहता है जबकि उसकी बुद्धि में यह बात विद्यमान होती है कि यह सब मिथ्या है।
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06-05-2013, 05:21 PM | #29 |
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Re: संत दोहावली
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .........
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06-05-2013, 10:29 PM | #30 |
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Re: संत दोहावली
रुठे सुजन मनाइए, जो रुठै सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥ अगर अच्छे लोग आपसे रूठ जाएँ तो आपको उन्हें बार- बार मानना चाहिए। जैसे मोतियों की हार चाहे कितनी बार भी टूट जाए हम उसे से पिरो लेते हैं। सज्जन मनुष्य भी उन्ही मोतियों की तरह अनमोल होते हैं तुलसी बाबा ने भी कहाँ हैं की बरु भल बास नरक कर ताता . दुष्ट संग जनि देहि विधाता हे विधाता मुझे कभी दुर्जन व्यक्ति का संग मत देना चाहे उसके बदले में मुझे नरक में भेज दे
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