25-09-2011, 02:18 PM | #1 |
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संत दोहावली
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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25-09-2011, 02:25 PM | #2 |
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Re: संत दोहावली
राम नाम अनमोल है, बिन दामन ही बिकाय ।
तुलसी अचरज देखीये, कोई ना ग्राहक आय ॥ अर्थ: तुलसीदास जी कहते है कि परमेश्वर के नाम का कोई मोल (मूल्य) नही है वो अनमोल है इसकी कीमत कोई नही चुका सकता वो परमेश्वर का नाम बिना किसी मूल्य के मिल रहा है । यानि कलयुग मे नाम की महिमा है कोई भी कही भी और कैसे भी परमेश्वर का नाम ले सकता है उसका फ़ल है पर ये बड़े आश्चर्य की बात है कि फ़िर भी कोई परमेश्वर के नाम को नही लेता इसके कोई ग्राहक है ही नही ।
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25-09-2011, 02:33 PM | #3 |
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Re: संत दोहावली
कबिरा जब हम पैदाअ हुये, जग हंसे हम रोये ।
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोये ॥ अर्थ: कबीर दास जी कहते है जब हमारा जन्म हुआ था उस समय हम तो रो रहे थे पर बाकि सब लोग हंस रहे थे । (बच्चे के जन्म पर सब लोग खुश होते है)। आगे कबिर दास जी कहते है कि इस दुनिया में ऐसा काम करना के जब मौत आये तो आपकी याद मे सब रोये पर आप सदा के लिये लोगो के दिलो मे अमर हो जाये । जैसे मदर टेरेसा, भगत सिंह, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, और भी बहुत उदाहरण है जिन्होने अपनी जिन्दगी दुसरो के हित के लिये जी और दुसरो के हित के लिये प्राण अर्पण कर दिये तो मित्रो कुछ ऐसा करो जिससे आपके देश, समाज, और परिवार का नाम सबकी जुबा पर हो । वो भी नही होता है तो एक बात याद रखो कि किसी का अच्छा कर सको तो करो नही तो नही करो क्योकि तुम भगवान नही पर किसी का बुरा कभी मत करो क्योकि तुम इंसान हो शैतान नही ।
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25-09-2011, 02:37 PM | #4 |
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Re: संत दोहावली
कबीरा गर्व ना किजीये, रंक ना हंसिये कोई ।
अजहू नाव समुन्द्र मे, ना जानो क्या होई ॥ कबीरदास जी कहते है कि जब अपनी परस्थिती अच्छी हो तो उस पर अभिमान नही करे और किसी गरीब की दशा पर कभी भी हंसी और खिल्ली ना उड़ाये क्योकि अभी भी संसार के इस सागर मे हमारे जीवन की नैया चल रही है क्या पता एक दिन हमारी भी हालत ऐसी ही हो जाये तो उसके प्रति सावधान रहे ।
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25-09-2011, 02:42 PM | #5 |
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Re: संत दोहावली
वाह क्या बात है ... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
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25-09-2011, 03:11 PM | #6 |
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Re: संत दोहावली
तन को जोगी सब करे मन को करे ना कोय ॥
सहज सब सिद्धि पाय जो मन जोगी होय ॥ अर्थ तन को जोगी करना मतलब जोगी के कपड़े पहनना, योगी जैसे रुप को अपना लेना पर वो सिर्फ़ दिखावे के लिये जैसे कि आजकल बहुत लोग करते है वो अपने मन को योगी नही बना पाते । मन को योगी बनाने का मतलब होता है कि अपनी पांचो इन्द्रियो और छठे मन पर और पांचो रोग काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह और छठा द्वेष पर जो काबू पा लेते है हर परिस्थित मे वो समान रहते है जैसे दुख मे विचलित नही होते और सुख मे कभी गर्वित और अभिमानी नही होते है वे लोग मन से योगी हो जाते है उन्हे फ़िर सिद्धिया भी अपने आप मिल जाती है ।
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25-09-2011, 03:18 PM | #7 |
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Re: संत दोहावली
जो ताको कांटा बोये, ता को बोय तु फ़ुल ।
ताको फ़ुल को फ़ुल है, वा को है त्रिशुल ॥ अर्थ: कोई भी अगर आप के साथ बुरा व्यहवार भी करे तो भी आप उसके साथ अच्छा व्यवहार करे या फ़िर उसका बुरा करने की कभी कोशिस ना करे क्योकि आप सत्य के साथ है तो आपका किसी भी तरह का नुकसान नही होगा और अगर आप सही है तो बुरे को ही शर्मिंदा होना पड़ेगा और आप के व्यहवार से शायद वो भी अच्छा बनने की कोशिस करे । हर प्रकार से आपको लाभ है ।
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25-09-2011, 03:38 PM | #8 |
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Re: संत दोहावली
पोथी-पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय अर्थ : वेद, पुराण व ग्रन्थ पढने से कोई विद्वान् तब तक नहीं बनसकता जब तक उसमे जीव मात्र के लिए प्रेम नहीं हो. परन्तु किसीने अगर प्रेम को समझ लिया हो पर उसने वेद, पुराण व ग्रन्थ नहीं पढ़े तो भी वो विद्वान हैं. भगवान भी प्रेम के अधीन हैं आप कितने ही विद्वान क्यों न हो अगर आप में प्रेम नहीं तो भगवान भी आप के साथ नहीं रह सकते. उदारण के तौर पे आप श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम जिन्होंने उद्धव जैसे ब्रह्म ग्यानी को भी प्रेम की भाषा सिखा दी दोस्तों एक ज्ञानी भक्त हो ऐसा जरूरी नही पर एक भक्त हमेशा ज्ञानी होता हैं. तुझ मैं राम, मुझ मैं राम, सब मैं राम समाया हैं कर लो सभी से प्यार जगत मैं कोई नहीं पराया हैं. बोलो राम बोलो राम बोलो राम राम बोलो राम
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25-09-2011, 04:24 PM | #9 | |
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Re: संत दोहावली
Quote:
ऐसे ही सूत्र फोरम को चार चांद लगाते हैँ |
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Last edited by Sikandar_Khan; 25-09-2011 at 04:38 PM. Reason: edit |
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25-09-2011, 04:29 PM | #10 |
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Re: संत दोहावली
नमन जी की ओर से एक और शानदार सूत्र.. बहुत ही लाजवाब..
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