23-03-2013, 12:05 AM | #31 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
पर होंठ काँप कर रह गए लफ्ज़ जुबां तक आये और होंठों से फिसल गए.... आज भी वो लफ्ज़ कॉलेज की सीढियों के पास पड़े हैं.. हम बार बार मिले और हर बार होठों का काँपना, लफ्जों का जुबां तक आना और फिसल कर गिर जाना चलता रहा..... गंगा के तट पर ,घर में सोफे के पीछे, लाइब्रेरी में ,बरामदे में और तुम्हे अपनी बाइक पर ले जाते हुए शहर के सभी रास्तों पर आज भी वो लफ्ज़ बिखरे पड़े हैं... पर कल जब तुम्हे देखा कई बरसों के बाद तो पहली बार झाँककर देखा तुम्हारी आँखों की गहराई में तुम्हारी आँखों ने मेरी आँखों से कहा... न समझ सके तुम मेरी जुबां जरा ध्यान से देखो अपने फिसले हुए लफ्जों को हर लफ्ज़ तुम्हे जोड़ी में मिलेगा एक तुम्हारा ....एक मेरा
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
23-03-2013, 12:08 AM | #32 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
जाने क्या थी वो मंजिल जिसके लिए
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा जागा सुबह भीगी पलकें लिए रात भर मेरा माजी बरसता रहा खता तो अभी तक बताई नहीं सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी बस हर दिन आइना बदलता रहा कसम दी थी उसने न लब खोलने की दबा दर्द दिल में सुलगता रहा खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू वो कहती रही और मैं सुनता रहा बेईमान तरक्की किये बेहिसाब मैं ईमान लेकर भटकता रहा सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी मैं टूटता रहा, जग परखता रहा खिलौना न मिल पाया शायद उसे खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा न पाया कोई फूल सूखा हुआ वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा
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23-03-2013, 12:11 AM | #33 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
सच्चाई और ईमान को परखने लगा है
लगता है खुदा पीकर बहकने लगा है कल तौबा करके आया था खुदा के सामने आज मयकदे को देखकर मचलने लगा है सह न सका हो गयी जब ग़म की इंतिहा बरसों का रुका बादल बरसने लगा है ताउम्र भागता रहा लोगों की भीड़ से अब कब्र में दुश्मन को भी तरसने लगा है टूटा जो इश्क में तो साकी ने दी पनाह मयखाने में जाकर वो अब संभलने लगा है इस कदर तन्हाई से घबराया हुआ है हर कमरे में आइना वो रखने लगा है क्या खता हुई जो गुनाहगार बन गया किताबे माजी के सफ़े पलटने लगा है हमदर्द बनके आया था वो कत्ल कर गया अब दोस्तों के नाम से डर लगने लगा है
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25-03-2013, 12:18 AM | #34 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
घाव गिनते न कभी ज़ख्म शुमारी करते
इश्क में हम भी अगर वक्त गुजारी करते तुझमे तो खैर मोहब्बत के थे पहलू ही बहुत दुश्मन ए जां भी अगर होता तो यारी करते हो गए धूल तेरे रास्ते में बैठे बिठाए बन गए अक्स तेरी आईनादारी करते वक्त आया है जुदाई का तो सोचते हैं तुझे आसाब पे इतना भी ना तारी करते होते सूरज तो हमें शाह ए फलक होना था चाँद होते तो सितारों पे सवारी करते आखिरी दाँव लगाना नहीं आया हमको जिन्दगी बीत गयी खुद को जुआरी करते
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25-03-2013, 12:35 AM | #35 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
न बुझा चिराग ए दयार ए दिल, न बिछड़ने का तू मलाल कर
तुझे देगी जीने का हौसला, मेरी याद रख ले संभाल कर ये भी क्या कि एक ही शख्स को, कभी सोचना कभी भूलना, जो न बुझ सके वो दिया जला, जो न हो सके वो कमाल कर गम ए आरजू मेरी जुस्तजू, मैं सिमट के आ गया रू ब रू, ये सुकूत ए मर्ग है किस लिए? मैं जवाब दूँ तू सवाल कर तू बिछड़ रहा है तो सोच ले, तेरे हाथ है मेरी ज़िन्दगी, तुझे रोकना मेरी मौत है, मेरी बेबसी का ख्याल कर मेरे दर्द का, मेरे ज़ब्त का, मेरी बेबसी, मेरे सब्र का, जो यकीं न आये तो देख ले, तू हवा में फूल उछाल कर
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03-04-2013, 12:03 AM | #36 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
सभी रचनाएँ अच्छी लगीं, जय भारद्वाज जी ! बधाई हो ।
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03-04-2013, 07:24 PM | #37 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
सूत्र-भ्रमण के लिए हार्दिक आभार बन्धु ..
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04-04-2013, 08:39 PM | #38 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान।
आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।१।। करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम। रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।।२।। विद्या पाई आपने बने महा विद्वान। माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।।३।। कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान। पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।।४।। माता देती सपन है बच्चों को कल्यान। उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।।५।। बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन। उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।।६।। माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह। अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।।७।। -सरदार कल्याण सिंह
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04-04-2013, 08:40 PM | #39 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई पंचतारा होटलों की शान शौकत कुछ न भाई बैरा निगोड़ा पूछ जाता किया जो मैंने कहा सलाम झुक-झुक करके मन में टिप का लालच रहा खाक छानी होटलों की चाहिए जो ना मिला क्रोध में हो स्नेह किसका? कल्पना से दिल हिला प्रेम मे नहला गई जब जम के तेरी डांट खाई माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई तेरी छाया मे पला सपने बहुत देखा किए समृद्धि सुख की दौड़ मे दुख भरे दिन जी लिए महल रेती के संजोए शांति मै खोता रहा नींद मेरी छिन गई बस रात भर रोता रहा चैन पाया याद करके लोरी जो तूने सुनाई माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई लाभ हानि का गणित ले ज़िंदगी की राह में जुट गया मित्रों से मिल प्रतियोगिता की दाह में भटका बहुत चकाचौंध में खोखला जीवन जिया अर्थ ही जीने का अर्थ, अनर्थ में डुबो दिया हर भूल पर ममता भरी तेरी हँसी सुकून लाई माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई। - हरिहर झा
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04-04-2013, 08:57 PM | #40 |
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Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
मलाला मलाला
आँखें तेरी चाँद और सूरज तेरा ख़्वाब हिमाला... वक़्त की पेशानी पे अपना नाम जड़ा है तूने झूटे मकतब में सच्चा क़ुरान पढ़ा है तूने अंधियारों से लड़ने वाली तेरा नाम उजाला.... मलाला मलाला स्कूलों को जाते रस्ते ऊंचे नीचे थे जंगल के खूंख्वार दरिन्दे आगे पीछे थे मक्के का एक उम्मी* तेरी लफ़्ज़ों का रखवाला....मलाला मलाला तुझ पे चलने वाली गोली हर धड़कन में है एक ही चेहरा है तू लेकिन हर दर्पण में है तेरे रस्ते का हमराही, नीली छतरी वाला, मलाला -निदा फाजली
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