15-08-2013, 05:16 PM | #31 |
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Re: जय हो ! जय हो !!
तुझे है पुकारा ये वो बंधन है जो कभी टूट नहीं सकता मिट्टी की है जो ख़ुश्बू, तू कैसे भुलायेगा तू चाहे कहीं जाये, तू लौट के आयेगा नई-नई राहों में, दबी-दबी आहों में खोये-खोये दिल से तेरे कोई ये कहेगा ये जो देस... तुझसे ज़िंदगी, है ये कह रही सब तो पा लिया, अब है क्या कमी यूँ तो सारे सुख हैं बरसे पर दूर तू है अपने घर से आ लौट चल तू अब दिवाने जहाँ कोई तो तुझे अपना माने आवाज़ दे तुझे बुलाने वही देस ये जो देस... ये पल हैं वही, जिसमें हैं छुपी पूरी इक सदी, सारी ज़िंदगी तू न पूछ रास्ते में काहे आये हैं इस तरह दो राहे तू ही तो है राह जो सुझाये तू ही तो है अब जो ये बताये जाएं तो किस दिशा में जाये वही देस ये जो देस...
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
15-08-2013, 05:17 PM | #32 |
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Re: जय हो ! जय हो !!
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है सैकड़ों कुर्बानियां देकर ये दौलत पाई है मुस्कुराकर खाई है सीनों पे अपने गोलियां कितने वीरानों से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है ख़ाक में हम अपनी इज़्ज़त को मिला सकते नहीं अपनी आज़ादी... क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले वफ़ा के सामने आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने लाख फ़ौजें ले के आए अम्न का दुश्मन कोई रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं अपनी आज़ादी... वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं अपनी आज़ादी... (वन्दे मातरम) हम वतन के नौजवां हैं हमसे जो टकराएगा वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जाएगा वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मों-सितम आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहराएगा जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं सर कटा सकते...
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16-08-2013, 12:07 AM | #33 | |
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Re: जय हो ! जय हो !!
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