05-01-2012, 08:01 AM | #11 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
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05-01-2012, 08:05 AM | #12 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
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05-01-2012, 08:12 AM | #13 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
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05-01-2012, 08:15 AM | #14 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
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05-01-2012, 08:19 AM | #15 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
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05-01-2012, 08:23 AM | #16 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
सम्माननीय Dark Saint Alaick जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया , आपका बहुत शुक्रिया . |
19-01-2012, 07:23 PM | #17 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
सूरज का उगना याद रहा, पर दिन का ढलना भूल गए |
पलकों में सपने मंजिल के, पावों से चलना भूल गए || १. गंभीर समस्यायों का सागर, इधर उधर लहराता है | लहरों के साथ बहे जाते, बाहों से तरना भूल गए || २. सुख बांट-बांट भोगा जाता, दुख भोगे सभी अकेले ही | जीते हैं औरों की खातिर, अस्तित्व स्वयं का भूल गए || ३. अविराम बही जाती जीवन की, धारा समय धरातल पर | क्यों भोर भरी दास्तान शांति, समता की लिखना भूल गए || ४. सब खड़े मौत की लाईन में, कब किसका नंबर आ जाए | तुम रचा अमरता की मेहंदी, मृत्युंजय बनना भूल गए || ५. मंदिर-मंदिर में ढूंढ रहे, कब से ज्योतिर्मय इश्वर को | जीवन मंदिर में सदाचार का, दीप जलाना भूल गए || ६. जब कल्पवृक्ष बीज और अमृत के कलश पास में हैं | तब 'कनक' स्वयं की राहों में, क्यों फूल खिलाना भूल गए | ~ साध्वी कनकश्रीजी - पुस्तक " धम्म जागरणा " से |
19-01-2012, 07:24 PM | #18 |
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Re: दर्पण सीरत नहीं दिखाता
नर और नारी
भयानक जंगल में वे दोनों मिले-अचानक और खोये-खोये से|पुरुष ने कहा – ‘आओ अब हम साथ रहें|’ नारी ने सिर झुका लिया|पुरुष ने उसके कोमल हाथ अपने बलिष्ठ बाहुओं में थाम लिये|पुरुष ने कहा –मै कठोर हूं|आदेश देना मेरा स्वाभाव है और उसके विरुद्ध कुछ भी सुनने कि मुझे आदत नहीं है|क्या तुम मेरे साथ रह सकोगी?नारी ने कहा –“मै कोमल हूं|जीवन में उफान लाती हूं और उसे अपने में समाती भी हूं|मै सदा एक मुद्रा में रहने वाले पर्वत का शिखर नहीं,लहरों में इठलाने वाली सरिता हूं |”पुरुष ने कहा –“तब तुममें मुझे अपना सेवक बनाकर रखने की क्षमता है|” मुनि श्री 108प्रमाण सागर जी की पुस्तक “दिव्य जीवन का द्वार”से सभी मुनि,आर्यिकाओं,साधु,साध्वियो,श्रावक श्राविकाओं को मेरा यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना,जय जिनेन्द्र,नमस्कार |
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