08-10-2012, 04:04 AM | #1 |
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रूप और रुबाइयां
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-10-2012, 04:16 AM | #2 |
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Re: रूप और रुबाइयां
इंसान के पैकर में उतर आया है माह
कद या चढ़ती नदी है अमृत की अथाह लहराते हुए बदन पे पड़ती है जब आंख रस के सागर में डूब जाती है निगाह
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-10-2012, 08:24 AM | #3 |
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Re: रूप और रुबाइयां
एक ही शब्द है इस सूत्र के लिए और वो है बेहतरीन। और भी प्रविस्तियो का इंतज़ार रहेगा
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
08-10-2012, 03:45 PM | #4 |
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Re: रूप और रुबाइयां
अति सुन्दर अलैक भाई
अद्भुत
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
08-10-2012, 03:54 PM | #5 |
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Re: रूप और रुबाइयां
चित्र मैं प्रस्तुत कर देता हूँ
रुबाइ आप लिख दीजिये
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08-10-2012, 04:14 PM | #6 |
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Re: रूप और रुबाइयां
अति सुन्दर
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09-10-2012, 12:05 AM | #7 |
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Re: रूप और रुबाइयां
मित्र निशांतजी ! आप कई जगह ऐसा फंसा देते हैं कि जवाब देते नहीं बनता ! फ़िराक साहब के ज़माने में तो मोबाइल था नहीं, फिर वे इस पर क्या रुबाई रचते ... अब यह काम आपके चित्र के लिए मुझे ही करना होगा ! मजबूरी है, लीजिए हाज़िर है ...
अक्स अपना सेल में देखा मैंने आईना शायद सोच लिया मैंने रू-ब-रू होने की तमन्ना थी तेरे खुद को तुझमें पा लिया मैंने .
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09-10-2012, 07:30 AM | #8 | |
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Re: रूप और रुबाइयां
Quote:
maja aa gaya alaik bhaai thanks for express service.
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