21-05-2014, 09:57 AM | #1 |
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भोजपुरी कविता- दारू के खतिरा भागेला
*** कइले बा उ एतना देरी करत होई केनहो फेरी मित्र मण्डली मयखाना मेँ होइहेँ सँ चाहे थाना मेँ बाटे ओकर अजब कहानी कि सुनीँ सभे सुनावत बानी दुनिया मेँ का नाव कमाई हवे छुछेरा घाव कमाई पी के झगरा फरिआवेला हीक हीक भर गरिआवेला ओ के भीतर बाटे बूता डटल रहेला खा के जूता पनडोहा मेँ गीरे जा के दाँत चिआरे नहा नहा के मउगी गुरना के बोलेले राज सजी ओकर खोलेले बिखियाला पीटे लागेला मिले जवन छीँटे लागेला हार बेचि पीयेला दारू छाती पीटेले मेहरारू बदबू अजबे निकले तन से राखे ओके बड़ी जतन से जे ओकरा लगे आवेला नाक दबा के मुँह बावेल जहिया भर पेटा पी लेला जिनिगी से बेसी जी लेला बेहोशी जब चढ़े कपारे जगा जगा सब केहू हारे गाँथे खातिर सूई आवस डाक्टर तहिया बहुते धावस ओ के बहुत बहुत समझावस बन्द करऽ तूँ दारू पीयल करेजा मेँ क दी ई बीयल जवना के मुश्किल बा सीयल तबो बिहाने जब जागेला दारू के खतिरा भागेला कविता- आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 22-05-2014 at 09:07 AM. |
21-05-2014, 10:02 PM | #2 |
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Re: भोजपुरी कविता- दारू के खतिरा भागेला
नशाग्रस्त समाज की वास्तविक तस्वीर और उससे बचाव की जरुरत और उपाय के बारे में सोचना आवश्यक है. बहुत सुन्दर कविता.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
31-05-2014, 11:23 AM | #3 |
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Re: भोजपुरी कविता- दारू के खतिरा भागेला
रचना पर आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। सादर नमन्।
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