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#1 |
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![]() ![]() Join Date: Jul 2013
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![]() जान-ए-जिग्गर इन आँखों में रहने को जी चाहता है, बता तेरे बिन जियुं कैसे अब इस बे-दर्द जहान में, छोड़ सब-कुछ अब जहाँ से जाने को जी चाहता है,
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Advo.Ravinder Ravi "Sagar" ![]() ![]() |
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#2 |
Super Moderator
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[quote=advo.ravinderravi'sagar';528618]
इन हसीन होंठों को देख चूमने को जी चाहता है, जान-ए-जिगर इन आँखों में रहने को जी चाहता है, बता तेरे बिन जियुं कैसे अब इस बे-दर्द जहान में, छोड़ सब-कुछ अब जहाँ से जाने को जी चाहता है, [/quote] आपको पुनः अपने मध्य देख कर अच्छा लगा, मित्र रविन्द्र रवि सागर जी. आपके दोनों शे'र अपनी अपनी जगह ठीक हैं. पहला श'र जहाँ प्रिय से मिलन की लालसा प्रदर्शित करता है तो दूसरा शे'र नाकाम मुहब्बत में प्रेमी ह्रदय की छटपटाहट व मोहभंग का दर्द प्रस्तुत करता है. अच्छा प्रयास है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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