04-11-2014, 06:55 PM | #1 |
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क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !"
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04-11-2014, 07:03 PM | #2 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) दुनिया के विभिन्न धर्मों के बहुत से त्योहार खुशियों का इजहार करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी त्योहार हैं जो हमें सच्चाई और मानवता के लिए दी गई शहादत की याद दिलाते हैं। ऐसा ही त्योहार है मुहर्रम, जो पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। यह हिजरी संवत का प्रथम महीना है। मुहर्रम एक महीना है, जिसमें दस दिन इमाम हुसैन का शोक मनाया जाता है। इसी महीने में पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था। पैगंबर-ए-इस्लाम के बाद चार खलीफा (राष्ट्राध्यक्ष) उस दौर की अरबी कबीलाई संस्कृति के अनुसार, प्रमुख लोगों द्वारा मनोनीत किए गए। लोग आपस में तय करके किसी योग्य व्यक्ति को प्रशासन, सुरक्षा इत्यादि के लिए प्रमुख चुन लेते थे। उस चुनाव में परिवार, पहुंच और धनबल का इस्तेमाल नहीं होता था :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 07:05 PM | #3 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) जिन लोगों ने हज़रत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और ख़लीफा चुना, वो लोग शियाने अली यानी शिया कहलाते हैं। शिया यानी हजरत अली के समर्थक। इसके विपरीत सुन्नी वे लोग हैं, जो चारों खलीफाओं के चुनाव को सही मानते हैं। रसूल मोहम्मद साहब की वफात के लगभग 50 वर्ष बाद इस्लामी दुनिया में ऐसा घोर अत्याचार का समय आया। मक्का से दूर सीरिया के गवर्नर यजीद ने अपनी खिलाफत का एलान कर दिया। यजीद की कार्यपद्धति बादशाहों जैसी थी। याद रहे इस्लाम में 'बादशाह' और शहंशाह दिखने लगे, जो इस्लामी मान्यता के बिल्कुल उलट है। इस्लाम में बादशाहत की परिकल्पना नहीं है। जमीन-आसमान का एक ही 'बादशाह' अल्लाह यानी ईश्वर होगा। यजीद की खिलाफत के एलान के समय इमाम हुसैन मक्का में थे :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 07:11 PM | #4 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) सिंहासन पर बैठते ही यजीद ने मदीना के राज्यपाल वलीद पुत्र अतुवा को फरमान लिखा, "तुम इमाम हुसैन को बुलाकर मेरी आज्ञाओं का पालन करने और इस्लाम के सिद्धांतों को ध्यान में लाने के लिए कहो। यदि वह न माने तो इमाम हुसैन का सिर काट कर मेरे पास भेजा जाए। वलीद पुत्र अतुवा ने 25 या 26 रजब 60 हिजरी को रात्रि के समय हजरत इमाम हुसैन को राजभवन में बुलाया और उनको यजीद का फरमान सुनाया। इमाम हुसैन ने वलीद से कहा, "मैं एक व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी, दुष्ट विचारधारा वाले, अत्याचारी, खुदा रसूल को न मानने वाले यजीद की आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकता" :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 07:14 PM | #5 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) इसके बाद इमाम हुसैन साहब मक्का शरीफ पहुंचे, ताकि हज की पवित्र प्रथा को पूरा कर सकें। लेकिन वहां पर भी इमाम हुसैन साहब को किसी प्रकार चैन नहीं लेने दिया गया। शाम को बादशाह यजीद ने अपने सैनिकों को यात्री बना कर हुसैन का कत्ल करने भेज दिया। हजरत इमाम हुसैन को पता चल गया कि यजीद ने गुप्त रूप से सैनिकों को मुझे कत्ल करने के लिए भेजा है। मक्का एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां पर किसी भी प्रकार की हत्या हराम है। यह इस्लाम का एक सिद्धांत है" :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 07:17 PM | #6 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) इसी बात को ध्यान में रखते हुए कि मक्का में किसी प्रकार का खून-खराबा न हो, इमाम हुसैन ने हज की एक उप प्रथा, जिसको इस्लामिक रूप से उमरा कहते हैं, अदा किया। हजरत हुसैन इसके बाद अपने परिवार सहित इराक की ओर चले गए। मुहर्रम मास की 2 तारीख 61 हिजरी को इमाम हुसैन अपने परिवार और मित्रों सहित कर्बला की भूमि पर पहुंचे। 9 तारीख तक यजीद की सेना को इस्लामिक सिद्धांतों को समझाया। लेकिन हजरत इमाम हुसैन की बातों का यजीद की फौज पर कोई असर नहीं हुआ" :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 07:20 PM | #7 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"क्यों मनाते है मुहर्रम ?, जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ !" "मुंबई में मुहर्रम के दौरान का दृश्य" (नोट: अंदर की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं।) (WARNING: Some images of Ashura observance are graphic) सुबह नमाज से असर तक इमाम हुसैन के सब साथी जंग में मारे गए। इमाम हुसैन मैदान में अकेले रह गए। खेमे में शोर सुनकर इमाम साहब वहां गए तो देखा कि उनका 6 महीने का बच्चा अली असगर प्यास से बेहाल है। हजरत इमाम हुसैन ने अपने बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया और मैदाने कर्बला में ले आए। हजरत इमाम हुसैन साहिब ने यजीद की फौजों से कहा कि बच्चे को थोड़ा-सा पानी पिला दो, किंतु यजीद की फौजों की तरफ से एक तीर आया और बच्चे के गले पर लगा और बच्चे ने बाप के हाथों में तड़प कर दम तोड़ दिया। इसके बाद तीन दिन से भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन साहब का कत्ल कर दिया गया। हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान की। धार्मिक पर्व फेस्टिवल ऑफ आसुर शिया मुस्लिमों का त्योहार है। इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम में कर्बला स्थित शिया तीर्थ स्थल। यहां इमाम हुसैन और इमाम अब्बास के तीर्थ स्थल हैं" :......... सौजन्य से :
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04-11-2014, 09:09 PM | #8 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
मुहर्रम की पृष्ठभूमि तथा हज़रत इमाम हुसैन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए धन्यवाद, डॉ श्री विजय जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
05-11-2014, 03:49 PM | #9 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
प्रिय रजनीश जी, प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
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05-11-2014, 04:07 PM | #10 |
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Re: क्यों मनाते है मुहर्रम ?.........
"मुहर्रम, जानिए भारत में ताजियों की शुरुआत !" "तैमूर को खुश करने के लिए शुरू हुई ताजियों की परंपरा" मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्* का पहला महीना है। पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। इसकी शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी, जिसका ताल्लुक शीआ संप्रदाय से था। तब से भारत के शीआ-सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है) की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं" :......... सौजन्य से :
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इमाम हुसैन, पैगम्बर, मुहर्रम, रमजान, हजरत मुहम्मद सा., hazrat imam husain, muharram |
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