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#1 |
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![]() विद्योत्तमा और कालिदास की वास्तविक कहानी एक जनश्रुति के अनुसार कालिदास पहले महामूर्ख थे। मालव देश की राजकुमारी विद्योत्तमा अत्यंत बुद्धिमान और रूपवती थी। अनेक बुद्धिजीवी उस पर लट्टू थे। लेकिन वह उन्हें घास नहीं डालती थी। राजकुमारी विद्योत्तमा को अपनी विद्या पर बड़ा गर्व था। उसने यह प्रण लिया था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा। विद्योत्तमा से विवाह की इच्छा अपने मन में लिए अनेक विद्वान् दूर-दूर से आये लेकिन कोई भी उसे शास्त्रार्थ में हरा न सका। उनमें से कुछ ने अपमान और ग्लानि के वशीभूत होकर राजकुमारी से बदला लेने के लिए एक चाल चली। उन्होंने एक मूर्ख युवक की खोज प्रारंभ की। एक जंगल में उन्होंने एक युवक को देखा जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर वह बैठा हुआ था। विद्वानों को अपनी हार का बदला लेने के लिए आदर्श युवक मिल गया। उन्होंने उससे कहा – “यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक राजकुमारी से हो जायेगा”। उन्होंने युवक को सुन्दर वस्त्र पहनाये और उसे शास्त्रार्थ के लिए विद्योत्तमा के पास ले गए। विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा। विद्योत्तमा मान गई और शास्त्रार्थ-सभा शुरू हुई। विद्योत्तमा ने एक उँगली उठाई। उसका तात्पर्य था, ‘ईश्वर एक है। अद्वैत ही ईश्वरत्व है।’ युवक की समझ में आया, ‘यह हमारी एक आँख फोड़ना चाहती है।’ अतः उन्होंने तत्क्षण दो उँगलियाँ ऊपर कर दीं। अर्थात् ‘तुम तो एक आँख फोड़ने की बात कर रही हो, मैं तुम्हारी दोनों आँखें फोड़कर अंधी बना दूँगा।’ पंडितों ने व्याख्या की, ‘ईश्वर एक है। आपने ठीक कहा, पर प्रकृति और विश्व के रूप में वही अन्य रूप धारण करता है। अतः पुरुष और प्रकृति, परमात्मा और आत्मा दो-दो शाश्वत हैं।’ श्रोताओं ने ताली बजाकर पंडितमंडली की व्याख्या का समर्थन कर दिया। फिर विद्योत्तमा ने हथेली उठाई। पाँचों उँगलियाँ ऊपर की ओर उठी थीं। उनका तात्पर्य था, ‘आप जिस प्रकृति, जगत् जीव या माया के रूप में द्वैतवाद को स्थापित कर रहे हैं, उसकी रचना पंचत्तत्व से होती है। ये पंचतत्त्व हैं- पृथ्वी, पानी, पवन, अग्नि और आकाश। ये सभी तत्त्व भिन्न और अलग हैं, इनसे सृष्टि कैसे हो सकती है ?’ युवक की अक्ल में समझ आई, ‘यह युवती अब मुझे थप्पड़ मारना चाहती है। इसीलिए हाथ उठाया है और थप्पड़ दिखा रही है। ‘अच्छा, कोई बात नहीं। मैं अभी तुझे मजा चखाता हूँ।’ यह सोचकर उसने उँगलियों को समेटकर कड़ी मुट्ठी बाँध ली और विद्योत्तमा की ओर मुट्ठीवाला हाथ आगे फैला दिया। पंडितों ने व्याख्या की, ‘जब तक पंचतत्त्व अलग-अलग रहेंगे, सृष्टि नहीं होगी। पंचतत्त्व करतल की पंचांगुलि है। सष्टि तो मुष्टिवत् है। मुट्ठी में सभी मिल जाते हैं तो सृष्टि हो जाती है। यही तात्पर्य है, हमारे युवा महापंडित का।’ सभा-मंडप की दर्शक दीर्घा से फिर तालियाँ बजीं। विद्वानों ने युवक के मूर्खतापूर्ण सकेतों की ऐसी व्याख्या की कि विद्योत्तमा को अंततः अपनी हार माननी पड़ी और उसने कालिदास से विवाह कर लिया।आगे क्या हुआ- यह जानने के लिए आगे पढ़िए हमारे द्वारा रचित पूर्णतया काल्पनिक कहानी 'आइ एम सिंगल अगेन'-
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#2 |
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विद्योत्तमा कालिदास के साथ 'हनीमून टूर' से वापस लौटी तो बहुत प्रसन्न थी। प्रकाण्ड विद्वान कालिदास 'रात्रिकालीन विषयों' में भी इतना 'प्रकाण्ड विद्वान' निकलेगा- यह तो विद्योत्तमा ने सपने में भी नहीं सोचा था। विद्योत्तमा का संकेत मिलते ही कालिदास ने अपनी 'विद्वानी का झण्डा' हिमालय पर्वत के शिखर से लेकर सागर की गहराइयों तक गाड़ दिया था। कालिदास का 'साहसिक प्रदर्शन' देखकर तो वात्स्यायन भी शर्मा जाये!
एक दिन मूर्ख कालिदास विद्योत्तमा के राजमहल की बॉलकनी से सड़क पर खड़े एक ऊँट को बड़े ध्यान से देखकर यह समझने की कोशिश कर रहा था कि हाथी के दोनों ओर पूँछ होती है तो ऊँट के क्यों नहीं होती? भगवान ने ऊँट के साथ बड़ा अन्याय किया है। उसी समय विद्योत्तमा ने नीचे से पुकारते हुए कालिदास से अँग्रेज़ी में पूछा- ''क्या कर रहे हो बॉलकनी में, कालिदास डियर?'' कालिदास ने जवाब दिया- ''देख रहा हूँ।'' विद्योत्तमा ने पूछा- ''अरे, क्या देख रहे हो? मुझे भी बताओ।'' कालिदास ने जवाब दिया- ''कमल।'' कमल का फूल विद्योत्तमा को बहुत पसन्द था। कमल का फूल देखने के लिए विद्योत्तमा दौड़ती हुई बॉलकनी में आई और देखा कि कालिदास सड़क पर खड़े एक ऊँट को देख रहा है। विद्योत्तमा समझी कि उसने गलत सुना होगा। प्रकाण्ड विद्वान कालिदास 'कैमल' को 'कमल' कैसे बोल सकता है? उसी समय कालिदास ने कहा- ''कमल कितना अच्छा है!'' कालिदास के मुँह से 'कैमल' के स्थान पर 'कमल' सुनकर विद्योत्तमा के कान खड़े हो गए। अपना डाउट क्लियर करने के लिए उसने कालिदास से पूछा- ''नाउन किसे कहते हैं?'' कालिदास ने हर्षित स्वर में कहा- ''नाऊ की पत्नी को!'' खून का घूँट पीकर विद्योत्तमा ने अगला प्रश्न किया- ''अँग्रेज़ी में कितने अक्षर होते हैं?'' कालिदास ने अपने दोनों हाथ और अपने दोनों पैरों की ऊँगलियों पर बड़ी मुश्किल से गिनकर बताया- ''बीस!'' विद्योत्तमा ने अपना सिर पीट लिया। विद्वान विद्योत्तमा तुरन्त समझ गई कि षड्यन्त्र रचकर उसके साथ धोखाधड़ी की गई है। विद्योत्तमा के जलते हुए दिल के हाल से बेख़बर कालिदास ने अपनी 'प्रिय पत्नी' विद्योत्तमा से प्रश्न किया- ''विद्योत्तमा डार्लिंग, एक बात बताओ- ऊँट के दोनों ओर पूँछ क्यों नहीं होती? हाथी के तो होती है! हाथी कितना मोटा, भद्दा और थुलथुल जानवर है। भगवान ने उसको दोनों ओर पूँछ दिया। ऊँट कितना स्लिम और स्मार्ट जानवर है, भगवान ने सिर्फ़ एक ओर पूँछ दिया! क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता- भगवान ने ऊँट के साथ अन्याय किया है?'' कालिदास के मूर्खतापूर्ण प्रश्न ने जले पर नमक का काम किया और विद्योत्तमा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने आव देखा न ताव- मूर्ख कालिदास को तत्काल धक्का मारकर राजमहल से बाहर निकलवा दिया। मालव देश के नरेश को जब यह बात पता चली तो दुःख के कारण उनके प्राण-पखेरू उड़ गए और विद्योत्तमा राजकुमारी से महारानी बन गई। मालव देश की महारानी बनते ही विद्योत्तमा ने पूरे मालव देश में ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया- ''सुनो-सुनो…सभी देशवासियों ध्यान से सुनो। महारानी विद्योत्तमा का फ़रमान सुनो। महारानी विद्योत्तमा ने अपने फ़रमान में कहा है- 'आइ एम सिंगल अगेन'। इसलिए अगर कोई देशवासी महारानी विद्योत्तमा को शादी-शुदा कहता हुआ पकड़ा गया तो उसे सौ कोड़े की सज़ा दी जाएगी।''
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टिप्पणी- आप यहाँ पर जो कुछ भी पढ़ते हैं, वह हमारी रचनाओं का प्रथम प्रारूप (version) ही है। प्रथम प्रारूप से हमारा तात्पर्य यह है कि कविताओं को छोड़कर अन्य सभी रचनाएँ सीधे टंकित करके यहाँ पर पोस्ट कर दी जाती हैं। बाद में रचनाओं की आवश्यकता के अनुरूप कोई त्रुटि पाए जाने पर या रचना को और अधिक रोचक बनाने के लिए यथोचित् संशोधन समय-समय पर किया जाता है। लेखन-कला के प्रति पाठकों की अगाध उत्सुकता को देखते हुए हमने यह निर्णय लिया है कि समय-समय पर किए गए अपने संशोधन को लाल रंग से अपनी रचनाओं में दर्शाएँगे जिससे पाठक आसानी से यह समझ कर सीख सकें कि बाद में क्या संशोधन किया गया है। अब पढ़िए आगे की कहानी-
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#4 |
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कालीदास को बेइज़्ज़त करके राजमहल से बाहर निकलवाने के पश्चात् भी विद्योत्तमा के कलेजे में लगी हुई आग ठण्डी न हुई थी। रोते-रोते विद्योत्तमा का बुरा हाल था। विद्वान विद्योत्तमा को यह बात बर्दाश्त से बाहर थी कि एक महामूर्ख उसके शरीर को हर दिशा से गधे की तरह चर गया था। यही बात सोच-सोचकर विद्योत्तमा का दिल चौबीसों घण्टे हाहाकार करता रहता। विद्योत्तमा को समस्त पुरूष जाति से नफ़रत हो गई। पुरूषों से बदला लेने और अपने कलेजे में लगी आग को ठण्डा करने के लिए विद्योत्तमा ने एक नायाब तरीका ढूँढ़ निकाला। विद्योत्तमा के सैनिक प्रतिदिन दस युवकों को पकड़ लाते और विद्योत्तमा उनसे एक ही प्रश्न पूछती- ‘‘बताओ, मैं शादीशुदा हूँ या कुँवारी?’’
विद्योत्तमा को शादीशुदा बताने की सज़ा सौ कोड़ा थी। सजा से बचने के लिए युवक विद्योत्तमा को कुँवारी बताते। यह सुनकर विद्योत्तमा भड़क जाती और कहती- ‘‘क्या तुम्हें पता नहीं- मैं शादीशुदा हूँ? तुमने झूठ बोला है। क्या तुम्हें पता नहीं- मालव देश में झूठ बोलने की सजा दो सौ कोड़ा है?’’ यह कहकर विद्योत्तमा युवकों को दो सौ कोड़ा मारने का आदेश देती। जो युवक विद्योत्तमा को शादीशुदा बताता उसे सौ कोड़ा मारने की सजा दी जाती, क्योंकि विद्योत्तमा को शादीशुदा कहने पर सौ कोड़े की सजा निर्धारित की गई थी। कम सजा मिलने के कारण युवक विद्योत्तमा को शादीशुदा बताकर चुपचाप सौ कोड़ा खाकर चले जाते। उधर नंद वंश का पतन करने के उपरान्त मौर्य वंश की स्थापना करके चाणक्य ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली थी। विद्योत्तमा के ज्ञान के बारे में चाणक्य ने पहले से कुछ-कुछ सुन रखा था। चाणक्य की बड़ी इच्छा थी- एक बार विद्योत्तमा से मिलकर बातचीत की जाए, किन्तु मालव देश के प्रोटोकाॅल के अनुसार महारानी विद्योत्तमा से वही मिल सकता था जो उसका समकक्ष हो। मौर्य सम्राट के सिंहासन पर बैठने के बाद चाणक्य के पास अधिक कार्य न था। अतः चाणक्य का खाली मस्तिष्क विद्योत्तमा से भेंट करने का ‘जुगाड़’ सोचने में व्यस्त हो गया। इसी बीच मालव देश के युवक विद्योत्तमा की सजा से घबड़ाकर मौर्य देश में शरण लेने लगे तो चाणक्य के कान खड़े हो गए। मौर्य सम्राट ने सुझाव देते हुए कहा- ‘‘इस समस्या का एक ही समाधान है। मालव देश पर आक्रमण करके मौर्य देश में मिला लिया जाए।’’ चाणक्य ने कुपित होकर कहा- ‘‘चाणक्य महिलाओं के देश पर आक्रमण नहीं करता। विद्योत्तमा के साथ जो धोखाधड़ी हुई है, यह उसी का ‘साइड इफे़क्ट’ है। हमें विद्योत्तमा को समझाना होगा।’’ मौर्य सम्राट ने कहा- ‘‘विद्योत्तमा बड़ी जि़द्दी है। किसी की बात नहीं मानती।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘कोशिश करके देखने में क्या हर्ज़ है? हम आज रात भेष बदलकर अकेले मालव देश की ओर प्रस्थान करेंगे।’’ मौर्य सम्राट ने चिन्तित स्वर में कहा- ‘‘इस तरह अकेले न जाइए। ज़िद्दी विद्योत्तमा के कारण आपकी जान को ख़तरा हो सकता है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं। हमें कुछ नहीं होगा।’’ मौर्य सम्राट ने चाणक्य को समझाने की बहुत कोशिश की किन्तु चाणक्य न माना और भेष बदलकर मालव देश की सीमा में दाखिल हो गया। ‘सिर मुँडाते ओले पड़े’ की कहावत उस समय चरितार्थ हो गई जब मालव देश के सैनिकों ने चाणक्य को दसवें युवक के ‘कोटे’ में गिरफ़्तार करके महारानी विद्योत्तमा के राजदरबार में हाज़िर किया। चाणक्य के साथ गिरफ़्तार नौ युवक सजा के डर से थर-थर काँप रहे थे, जबकि चाणक्य मुस्कुराता हुआ खड़ा था। चाणक्य की मुस्कुराहट देखकर विद्योत्तमा को घोर आश्चर्य हुआ। उसने अपने मन में सोचा- ‘सारी मुस्कुराहट निकल जाएगी, जब सौ कोड़े की सजा मिलेगी।’ एक-एक करके नौ युवक जब सौ कोड़े खाकर चले गए तो चाणक्य की बारी आई। महारानी विद्योत्तमा ने कुटिल मुस्कान के साथ चाणक्य से पूछा- ‘‘बताओ, मैं शादीशुदा हूँ या कुँवारी?’’ चाणक्य मुस्कुराता हुआ चुप रहा। विद्योत्तमा ने कहा- ‘‘जवाब दो, युवक। मुस्कुराने से काम नहीं चलने वाला। क्या तुम्हें पता नहीं- महारानी विद्योत्तमा कोई छोटी-मोटी नहीं, बहुत बड़ी महारानी है। महारानी विद्योत्तमा के प्रश्न का जवाब न देना राजकीय अपमान समझा जाता है और इसकी सजा तीन सौ कोड़ा है!’’ चाणक्य पूर्ववत् मुस्कुराता हुआ चुप रहा। विद्योत्तमा आगबबूला होकर चिल्लाई- ‘‘जवाब दो, धूर्त युवक। मुस्कुराने से काम नहीं चलने वाला।’’ (क्रमशः)
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#5 |
Diligent Member
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Kaise bachega Chanakya saza se? Kya kahega Vidyottma se? Vidyottama ko kunvari kahe to saza, shadishuda kahe to saza, munh band rakhe to saza! Aap bhi sochiye hamare sath aur bataiye Chanakya kya jawab dega?
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WRITERS are UNACKNOWLEDGED LEGISLATORS of the SOCIETY! First information: https://twitter.com/rajatvynar https://rajatvynar.wordpress.com/ Last edited by Rajat Vynar; 13-02-2015 at 07:16 PM. |
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#6 |
Diligent Member
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very intresting ,.. rajat ji aap hi bataiyega is kahani ka ant hume intzar rahega .. thanks .
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#7 |
Member
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बहुत ही चटपटे अंदाज में कहानी प्रस्तुत हो रही है !! मुझे भी बहुत उत्सुकता है सम्पूर्ण कहानी की !!
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#8 | |
Moderator
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![]() कहानी का अगला एपिसोड जल्द ही प्रकाशित होना चाहिए! ![]()
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#9 | |
Moderator
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चाणक्य को कहना चाहिये कि ना तो आप शादीशुदा हैं और ना ही कुँवारी , आप Engaged/flirtationship में हैं । ummmm ![]()
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It's Nice to be Important but It's more Important to be Nice Last edited by Pavitra; 18-02-2015 at 02:36 PM. |
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#10 | |
Moderator
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Last edited by Deep_; 19-02-2015 at 12:48 PM. |
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