30-03-2015, 12:15 PM | #1 |
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हमारी बेगम को था मायके जाना ....bansi
हमारी बेगम को था मायके जाना बोली उसका होगा जल्दी घर आना ऑफीस से तुम सीधे घर आना बाहर चल कर है खाना खाना ऑफीस से बड़ी मस्ती में चला पहुँचा घर तो था ताला लगा बेगम का कुछ ना था पता फोन किया तो बोली उसका होगा घर देर से आना डार्लिंग गुस्से में तुम मत आना सूरत मेरी दिल में सज़ा तुम लेना थोड़ा सा कुछ तुम खा भी लेना आलू बोंदे की जगह बचा के रखना आलू बोंडा है मुझको खाना थोड़े से आलू उबाल कर रखना चटनी भी थोड़ी बना कर रखना बर्तन सॉफ कर पोंछ के रखना और हां घर को भी सॉफ करके रखना कहती गयी ना जाने क्या क्या करना गुस्से मेरे का लाज़मी था बॅडते जाना मुश्किल हो गया था उसको सुन ना कुछ उसको मैं बोल भी ना पाया कि इतने में घर की घंटी बजी मैं बोला घंटी बजी है अपना फ़ोन ज़रा होल्ड पर रखना खोला दरवाज़ा तो हैरान हो गया बेगम को देखा तो देखता ही रह गया ऊडन छू गुस्सा मेरा हो गया भर बाहों में उसे अंदर ले आया मोबाइल का यूज़ समझ में आया मुश्किल है आगे का हाल सुना ना ऐसी अदाओं पर बंसी का लाज़मी था मरना कल रात याद आ गया एक किस्सा पुराना हमारी बेगम को था मायके जाना बंसी(मधुर) |
30-03-2015, 11:36 PM | #2 |
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Re: हमारी बेगम को था मायके जाना ....bansi
बहुत बढ़िया, बंसी जी. इस कविता में में तो आपका सारा स्टाइल ही बदल गया. सच में यह बेहद रोचक है. धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
15-04-2015, 12:36 PM | #3 |
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Re: हमारी बेगम को था मायके जाना ....bansi
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हमारी बेग़म, hamari begum |
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