31-05-2015, 02:38 PM | #1 |
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विरोध
कुछ विशिष्ट पाठकों ने क्रुद्ध होकर हमारे तमिल लेखन को पागलपन करार देते हुए धमकी दी कि 'दाम मिलने पर ही पागलपन करना चाहिए। पागलपन इसी तरह जारी रहा तो निषिद्ध कर दिए जाओगे।' गर्मी के गर्म-गर्म मौसम में दिमाग ठण्डा करने की गारण्टी के साथ ठण्डा-ठण्डा कोकाकोला बेचकर अपना धन्धा-पानी चलाने वाले ऐसे क्रुद्ध स्वभाव वाले पाठकों से हमारा विनम्र स्पष्टीकरण यह है कि हिन्दी के पाठकों को कुपित करने के उद्देश्य से हमने तमिल भाषा में नहीं लिखा था। हमारा अनुमान था कि हमारे सभी पाठकगण बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ हैं अौर उनके पास विश्व की किसी भी भाषा को हिन्दी या अँग्रेज़ी में अनुवाद करके या 'किसी से करवाकर' समझ लेने की क्षमता पहले से विद्यमान है, जैसे हमारे पास है। इस स्पष्टीकरण के बाद भी यदि आप मुझे पागल कहते हैं तो सबसे पहले जाकर विख्यात लेखिका तसलीमा से कहिए, वे भी तो बंगला भाषा में लिखती हैं! बहरहाल, भविष्य में तमिल के साथ हिन्दी अनुवाद भी यथाशीघ्र प्रस्तुत किया जाएगा। आपको यह जानकर अतीव प्रसन्नता होगी कि हमारी आगामी तमिल रचना 'हिचकॉक के चमचे' अन्तर्जाल में शीघ्र ही हिन्दी में आ रही है।
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01-06-2015, 09:30 AM | #2 |
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Re: विरोध
बहुत सुंदर. कई कई भाषाओं का एक साथ तुलनात्मक अध्ययन और विवेचन अन्यत्र मिलना दुर्लभ है. तमिल भाषा में लिखने और बोलने तथा उच्चारण संबंधी बारीकियों से पाठकों को मज़ाक मज़ाक में अवगत करवाने का प्रयास साहसिक व सराहनीय है. आलेख अत्यंत रोचक है. धन्यवाद, रजत जी.
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01-06-2015, 01:43 PM | #3 |
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Re: विरोध
hindi ke alava anya bhasha me likhna hi bahut badi bat hai rajat ji or usame hasate hue koi bat kahna wo to or bhi kathin hai jo ki aap kathin kary kar lete ho ... bahut bahut abhar
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