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Old 07-06-2015, 03:15 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking मिस मंगल

संवाद अर्थात् डाइलॉग की महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि संवाद के बिना फ़िल्म, उपन्यास, लघु-उपन्यास (novella), कहानी, लघु-कथा, नाटक, एकांकी, रेडियो-नाटक इत्यादि कुछ भी लिखना असम्भव प्रायः है। कुतर्क के रूप में अब यह मत कहिएगा- एक ज़माने में मूक फ़िल्में ही बनती थीं और वर्ष 1987 में लोकार्पित कोलृीवुड के सुपरस्टार कमल कासन (हासन) की तमिल फ़ीचर फ़िल्म 'पेसुम पडम्' (பேசும் படம் बोलते चित्र) और तेलुगु फ़ीचर फ़िल्म 'पुष्पक विमाना' (पुष्पक विमान) संवादरहित फ़िल्में थीं। वस्तुत: ये फ़िल्में प्रयोग के तौर पर कुछ नया करने के उद्देश्य से निर्मित की गई थीं। अतः इन फ़िल्मों को अपवाद ही कहा जाएगा। संदर्भवश हम यहाँ पर यह बताते चलें कि कीर्तिमान बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1999 में मात्र 24 घण्टे में 'स्वयंवरम्' (स्वयंवर) और वर्ष 2014 में मात्र 12 घण्टे में 'नडु इरवु' (मध्यरात्रि) नाम की तमिल फ़िल्में बनाई जा चुकी हैं।

कुछ अपवादों को छोड़कर एक संवादरहित रचना का निर्माण करना असम्भव प्रायः है। संवाद से कथानक में उत्तरोतर प्रगति होती है। किसी परिप्रेक्ष्य में हुई वार्तालाप में निहित भिन्न-भिन्न कथनों का समुच्चय ही संवाद है। संवाद के विभेद में ही कथन, प्रतिकथन, उपकथन, कथनाकथन, कथनोपकथन, कथोपकथन, कथाकथ इत्यादि आते हैं। यद्यपि रेडियो नाटक के लिए संवाद लिखना सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि केवल श्रव्य-माध्यम से ही श्रोताओं को कहानी समझानी होती है, किन्तु फ़िल्म के निमित्त संवाद लेखन की प्रक्रिया और अधिक जटिल होती है जबकि इसमें दृष्य और श्रव्य दोनों माध्यमों से दर्शकों को कहानी समझानी होती है। फिल्म में बोले जाने वाले संवाद यदि दर्शकों के सिर के ऊपर से निकल जाएँ अौर अपना प्रभाव उत्पन्न न कर सकें तो ऐसे संवादों को निरर्थक माना जाता हैं। फ़िल्म के लिए संवाद लेखन की प्रक्रिया में यह मानकर चला जाता है कि एक कम पढ़ा-लिखा रिक्शेवाला भी फ़िल्म देख सकता है। उदाहरण के लिए हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' का वह दृष्य याद करिए जिसमें कहानी का नायक संजय दत्त अपने मित्र से कहानी की नायिका विद्या बालान की खूबसूरती की प्रसंशा करते वक्त 'लट' शब्द बोलना भूलकर यह पूछने लगता हेै कि माथे पर गोल-गोल लटकने वाले बालों को क्या कहते हैं? 'लट' जैसे कम प्रयोग में आने वाले शब्दों को भली-भाँति समझाने की सटीक प्रक्रिया यही है। तमिल फ़िल्मों के सुपरस्टार रजनीकान्त की हिन्दी में डब की गई फ़िल्म 'शिवाजी: द बॉस' में 'ब्लैक मनी' की परिभाषा 'बड़े ही कायदे से समझाने' का वास्तविक औचित्य ही यही है। सरल शब्दों में एक फ़िल्म के लिए संवाद लेखन प्रक्रिया की क्लिष्टता की तुलना एक प्रोग्रामर के लिए 'एच०टी०एम०एल० स्ट्रिक्ट' लिखने, हलवाई के लिए हैदराबादी बिरयानी बनाने, दर्जी के लिए कोट सिलने, इन्जीनियर के लिए ताजमहल बनाने, पर्वतारोही के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने और एस्ट्रोनॉट के लिए चाँद पर जाने से की जा सकती है। कभी-कभी तो एक ही संवाद की पुनरावृत्ति करके दर्शकों पर विशेष प्रभाव छोड़ा जाता है। इस बात को एक सरल उदाहरण द्वारा समझते हैं। कहानी की हीरोइन मुम्बई की, कहानी का हीरो सेन्नै (चेन्नई) का। हीरोइन हीरो को इड्लि-डोसा-बड़ा खाने वाला काला कौवा कहकर चिढ़ाती है। कुछ दृष्य बाद हीरोइन सेन्नै में रहने लगती है अौर हीरो मुम्बई में। अब यदि हीरोइन के सेन्नै में इड्लि-डोसा-बड़ा खाते समय हीरो फोन पर हीरोइन को ठीक वही संवाद कहकर चिढ़ाए जो कभी हीरोइन ने हीरो से कहा था तो दर्शक प्रसन्न होकर तुरन्त ताली पीटने लगते हैं।
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Old 07-06-2015, 03:22 PM   #2
Rajat Vynar
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Talking Re: मिस मंगल

एक फ़िल्म का संवाद लेखन उस फ़िल्म की पटकथा अर्थात् स्क्रीनप्ले पर आधारित होती है। यदि बहुत अधिक गहराई से विश्लेषण न किया जाए तो पटकथा एक प्रकार से किसी फ़िल्म में घटित होने वाले घटनाक्रमों का दृष्यवार विस्तृत विवरण है जिसमें प्रायः संवाद नहीं होता। अति आवश्यक होने पर एक-दो संवाद दे दिए जाते हैं जिसे 'कैचिंग डॉइलाग' कहते हैं। एक दृष्य में उपस्थित पात्रों के मध्य घटित घटना के आधार पर ही उन पात्रों के संवाद लिखे जाते हैं। समाचार-पत्रों में प्रकाशित समाचारों में सिर्फ घटना ही दी जाती है, संवाद नहीं दिया जाता। यदि आप संवाद लिखने में माहिर हैं तो समाचार में उल्लिखित घटना को पढ़ते ही पात्रों के मध्य हुई सम्भावित वार्तालाप में निहित संवाद के क्रम को पलक झपकते ही अनुमान लगा सकते हैं। इस बात को एक रोचक उदाहरण द्वारा समझते हैं। एक प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार-पत्र में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार 'वालेन्टाइन सप्ताह में हग-डे पर एक कॉलेज में एक छात्र और छात्रा में हग-डे पर किसी बहस के चलते आपस में विवाद उत्पन्न हो गया और छात्र ने क्रोधित होकर छात्रा को एक चाँटा जड़ दिया। मामला पुलिस-स्टेशन तक पहुँच गया। छात्रा ने छात्र को बदले में एक चाँटा मारकर समझौता कर लिया।' इसी मंच के एक सूत्र में हमने यह प्रश्न उठाया था कि अमूमन छात्र लोग किसी छात्रा को इतनी जल्दी चाँटा नहीं जड़ देते। फिर ऐसी कौन सी बात थी जिसके कारण छात्र ने आपे से बाहर होकर छात्रा को चाँटा जड़ दिया? आखिर इनके बीच ऐसी कौन सी वार्तालाप चल रही थी? इस घटना पर आधारित अनुमानित संवाद का क्रम नीचे दिया जा है-

छात्र- आज हग-डे है।

छात्रा- हाँ...

छात्र- हग ले रही हो या दे रही हाे?

छात्रा- (मज़ाक़ में) हग जा के देना अपनी बहन को। तुम्हारा इन्तेजार कर रही होगी।

देखा आपने- छात्र के आपे से बाहर होने के लिए छात्रा का मज़ाक में कहा गया संवाद पर्याप्त है और दर्शकों के लिए स्वीकार्य है। अतः संवाद के इस क्रम को सटीक एवं परिपूर्ण माना जाएगा। कुछ पाठकों के मन में यह बात अवश्य आई होगी कि बहन की जगह माँ क्यों नहीं हाे सकती? इसका उत्तर यह है कि प्रायः लड़कियों को बहन की अौर पत्नियों को माँ की टाँग पकड़कर घसीटने की आदत होती है। हमारी बात पर विश्वास न आए तो आज ही हिम्मत करके प्रैक्टिकल करके देख लीजिए। अपनी पत्नी से हर वक्त अपनी माँ की तारीफ करना शुरू कर कीजिए, फिर देखिए- आपको क्या 'मुँहतोड़' जवाब मिलता है- 'आज से अपनी माँ के पास सोना!' समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचार के परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट है कि छात्रा के संवाद का माकूल प्रतिकथन छात्र के पास न होने के कारण ही छात्र ने उत्तेजित होकर छात्रा को चाँटा जड़ा होगा, क्योंकि सामान्य वार्ताताप के चलते एक मनुष्य तभी क्रोधित होता है अथवा आक्रामक होकर हिंसा का सहारा लेता है जब उसके पास माकूल प्रतिकथन नहीं होता। अब यक्ष-प्रश्न यह है कि चाँटे के स्थान पर छात्र का माकूल प्रतिकथन क्या होता? आगे पढ़िए-

छात्र- अपनी ननद की अभी से तुम्हें इतनी चिन्ता है?

देखा आपने- अपनी बहन को छात्रा का ननद बताकर कितनी सफाई से छात्रा को शर्मिंदा कर दिया गया। इस प्रकार के प्रतिकथन को दर्शक बहुत पसन्द करते हैं। संवाद लेखन क्षमता होने के कारण हम तो समाचार पढ़ते ही हँसते-हँसते लोटपोट हो गए थे।
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Last edited by Rajat Vynar; 07-06-2015 at 03:28 PM.
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Old 07-06-2015, 03:26 PM   #3
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Talking Re: मिस मंगल

अब चलते-चलते एक उपयोग सुझाव- यदि आपमें संवाद लेखन की क्षमता है तो यह बात अपनी गर्लफ्रेण्ड से बताने की हिमाकत कभी न करिएगा। एक बार हमने बता दिया था तो उसने भड़ककर यह कहते हुए बोलना बन्द कर दिया था कि हमारे द्वारा बोले गए हर वाक्य ओरिजनल न होकर बनावटी संवाद हुआ करते हैं। हमने बहुत समझाने की कोशिश की कि यह तो प्लस पॉइंट है। हर वक्त तुम्हें परफेक्ट डॉइलाग ही सुनने को मिलेंगे, किन्तु वह न मानी।

कथन-प्रतिकथन का अब एक उदाहरण और-

हीरोइन- तुम क्या अपने आपको हीरो समझते हो?

हीरो- तुम क्या अपने आपको मिस मंगल समझती हो?

देखा आपने- कितना माकूल जवाब है!

आशा है- अब आप संवाद की महत्ता को समझ गए होंगे। हमारा लेख पढ़कर ईर्ष्या के कारण दाँत पीसने के स्थान पर आज से ही संवाद लेखन की अद्भुत कला को सीखने के प्रयास में लग जाइए। इस कला को आप सीख गए तो 'सामने वाला क्या बोलने वाला है?' यह आप आसानी से जान जाएँगे, जैसा कि हम जान जाते हैं। हमारी बात छोड़िए, क्योंकि आप इस समय कोई छोटे-मोटे नहीं, विश्व के बहुत बडे़ संवाद-विशेषज्ञ से बात कर रहे हैं। ऐसा कहते आप की नज़रों में हम बहुत बडे़ मूर्ख दिखाई दे रहे होंगे, किन्तु क्या करें? देश में जनवरी, 2014 से इसी प्रकार अपने आप को इंट्रोड्यूस करने का फैशन चल रहा है! अभियान सम्पन्न।
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Last edited by Rajat Vynar; 07-06-2015 at 03:30 PM.
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Old 08-06-2015, 10:10 AM   #4
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सन्दर्भवश यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि विख्यात निर्माता गुरुदत्त के समय के ख्यातिप्राप्त लेखक अबरार अलवी संवाद-महारथी कहलाने के बावजूद इतनी मन्द गति से लिखते थे कि कभी-कभी तो एक कथन लिखने के बाद उसका प्रतिकथन लिखने में एक दिन का समय लगा देते थे। (Source: KALI MURGI)
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Old 09-06-2015, 11:45 PM   #5
soni pushpa
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Originally Posted by rajat vynar View Post
सन्दर्भवश यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि विख्यात निर्माता गुरुदत्त के समय के ख्यातिप्राप्त लेखक अबरार अलवी संवाद-महारथी कहलाने के बावजूद इतनी मन्द गति से लिखते थे कि कभी-कभी तो एक कथन लिखने के बाद उसका प्रतिकथन लिखने में एक दिन का समय लगा देते थे। (source: Kali murgi)


रजत जी आपके अपार ज्ञान के आगे सच किसी की क्या बिसात ? कभी आप नमाज़ , कभी रहीम के दोहे कभी कबीरकी रचनाएँ तो कभी इंग्लिश लेखकों की बातें तो कभी कोई फ़िल्मी कहानी या गाने तो कभी अछे भले शास्त्रों के ज्ञान को व्यंग रचना में बदलते रहते हो इतने सारे ज्ञान की खान तो सिर्फ आपमें हो सकती है जिसे समय समय पर आप हमे अवगत कराया ही है आपके अपने लेख
के द्वारा ... सच काबिले तारीफ है आपका ज्ञान कोष ...
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Old 10-06-2015, 05:28 PM   #6
Rajat Vynar
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टिप्पणी के लि ए धन्यवाद, सोनी पुष्पा जी।
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Old 11-06-2015, 09:38 AM   #7
rajnish manga
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फिल्म निर्माण से जुड़े एक गंभीर विषय को अपने खास अंदाज़ में पाठकों तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद, रजत जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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