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#1 |
Diligent Member
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![]() ■■■■■■■■■■■ रुकती ग़म की कभी न धारा है इस नदी का नहीं किनारा है धन की खातिर ज़मीर को बेचूँ यह तो बिल्कुल नहीं गँवारा है जिसके ग़म में निकल गए आँसू तंज उसने ही आज मारा है उससे रिश्ता नहीं रखे कोई हर क़दम पर यहाँ जो हारा है मेरी बातों का मान क्यों रक्खे मैं हूँ जुगनू वो एक तारा है चूमों "आकाश" तुम बुलन्दी को वरना कोई नहीं तुम्हारा है ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 09/12/2019 ■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो- 9919080399 |
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