23-01-2020, 02:40 PM | #1 |
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भोजपुरी कविता- हमनी के बचपन
■■■■■■■■■■■■■ हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी, जवना के नइखे अब कवनो निशानी। मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा, डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा। हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी, दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी। दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव, मामा के दाँते से सगरी फोराव। लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना, लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना। सूती के बोरा, शीशो के पटरी, जाईंजा पढ़े त मारिंजा मछरी। नरकट के कलम, खढ़िया के दुधिया, बस्ता में चूवे त चले ना बुधिया। सलाखे के पटरी राखल जा डोरा, चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा। गेल्हीं जाँ पटरी करिखा रगरि के, मुँह होखे करिया बाबू झगरि के। नहरी में होखे तब खूबे नहान, उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान। रचना- आकाश महेशपुरी दिनांक- २२/०१/२०२० ■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो. न.- 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 23-01-2020 at 02:46 PM. |
03-02-2023, 04:37 PM | #2 |
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Re: कविता- हमनी के बचपन
संपादन के बाद
हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी, जवना के नइखे अब कवनो निशानी। मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा, डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा। हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी, दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी। दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव, मामा के दाँते से सगरी फोराव। लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना, लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना। सूती के बोरा, शीशो के पटरी, जाईंजा पढ़े त मारिंजा मछरी। नरकट के कलम आ खड़िया के घोल, माचिस के तास रहे साथ अनमोल। सलाखे के पटरी राखल जा डोरा, चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा। गेल्हीं जाँ पटरी करिखा रगरि के, मुँह होखे करिया बाबू झगरि के। नहरी में होखे तब खूबे नहान, उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान। कविता– आकाश महेशपुरी दिनांक- २२/०१/२०२० |
03-02-2023, 04:42 PM | #3 |
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Re: कविता- हमनी के बचपन
संपादन के बाद
हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी, जवना के नइखे अब कवनो निशानी। मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा, डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा। हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी, दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी। दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव, मामा के दाँते से सगरी फोराव। लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना, लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना। सूती के बोरा, शीशो के पटरी, जाईंजा पढ़े त मारिंजा मछरी। नरकट के कलम आ खड़िया के घोल, माचिस के तास रहे साथ अनमोल। सलाखे के पटरी राखल जा डोरा, चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा। गेल्हीं जाँ पटरी करिखा रगरि के, मुँह होखे करिया बाबू झगरि के। नहरी में होखे तब खूबे नहान, उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान। कविता |
14-03-2023, 07:33 PM | #4 |
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Re: कविता- हमनी के बचपन
संपादन के बाद पुनः
■■■■■■■■■■■ हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी, जवना के नइखे अब कवनो निशानी। मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा, डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा। हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी, दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी। दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव, मामा के दाँते से सगरी फोराव। लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना, लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना। नरकट के कलम आ खड़िया के घोल, माचिस के तास रहे साथ अनमोल। सलाखे के पटरी राखल जा डोरा, चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा। सूती के बोरा, शीशो के पटरी, जवना प सेल भा पोतिंजाँ कजरी। गेल्हीं जाँ पटरी खूबे रगरि के, मुँह होखे करिया बाबू झगरि के। नहरी में होखे तब खूबे नहान, उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान। रचना– आकाश महेशपुरी दिनांक- २२/०१/२०२० |
14-03-2023, 07:34 PM | #5 |
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Re: कविता- हमनी के बचपन
संपादन के बाद पुनः
■■■■■■■■■■■ हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी, जवना के नइखे अब कवनो निशानी। मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा, डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा। हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी, दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी। दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव, मामा के दाँते से सगरी फोराव। लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना, लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना। नरकट के कलम आ खड़िया के घोल, माचिस के तास रहे साथ अनमोल। सलाखे के पटरी राखल जा डोरा, चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा। सूती के बोरा, शीशो के पटरी, जवना प सेल भा पोतिंजाँ कजरी। गेल्हीं जाँ पटरी खूबे रगरि के, मुँह होखे करिया बाबू झगरि के। नहरी में होखे तब खूबे नहान, उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान। रचना |
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