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Old 04-02-2012, 02:36 PM   #1
sombirnaamdev
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Default जब ऐसा पहली बार हुआ

खेल डेस्क. टेस्ट सीरीज में सूपड़ा साफ करवाने के बाद टीम इंडिया पहला टी-20 मैच भी हार गई। लेकिन इस बार टीम की यह शिकस्त कुछ ज्यादा खास थी। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पहली बार टीम इंडिया ने मैदान पर लड़ने का जज्बा दिखाया।

टेस्ट सीरीज के चारों मुकाबलों में भारतीय खिलाड़ियों ने पहले ही दिन से हथियार डाल दिए थे। ऑस्ट्रेलिया के लिए मैच जीतना इस वजह से और आसान हो गया था। लेकिन टी-20 में टीम एक नए जोश के साथ उतरी।

मैच की पहली गेंद डाले जाने से लेकर कप्तान धोनी के आखिरी शॉट तक टीम ने जीत के लिए मेहनत की। मैदान पर खिलाड़ी एक-एक रन बचाने के लिए तत्पर रहे।

कप्तान धोनी ने भी कई दिनों बाद अपनी बल्लेबाजी के जौहर दिखाए। धोनी की बल्लेबाजी कुछ उसी स्टाइल की दिख रही थी जैसी उन्होंने वर्ल्डकप के फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ की थी।

भारतीय टीम में सुधार यहीं से जाहिर होता है कि जो टीम टेस्ट में पारी के अंतर से हार रही थी, वो महज 31 रन से हारी। टीम के बल्लेबाज भी अचानक से ढेर नहीं हुए।

टीम का यह अंदाज देख प्रशंसक अगले टी-20 में जीत की उम्मीद कर सकते हैं। यदि टीम ऐसे ही खेलती रही तो वनडे सीरीज में भी धोनी ब्रिगेड का जलवा छाएगा।
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Old 04-02-2012, 02:37 PM   #2
sombirnaamdev
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

श्रीनगर। कहा जाता है कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो कश्मीर में है। यहां जाकर लोग स्वर्ग का सोपान करते हैं। इसी स्वर्ग को देश से जोड़ती है यह सुरंग। इसका नाम है जवाहर सुरंग। जवाहर सुरंग के पास ही देश की सबसे लंबी रेल सुरंग का निर्माण हो रहा है। इसका नाम रखा गया है टी-80।

11.17 किमी लंबी टी-80 के निर्माण में लगभग 1100 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसके पूरा होने में सात वर्ष का समय लगा। सुरंग का निर्माण न्यू आस्ट्रेलियन मैथड से किया गया है। सुरंग में फायर डिटेक्शन सिस्टम, फायर फाइटिंग सिस्टम के साथ ही सीसीटीवी कैमरे और रेडियो सिस्टम भी लगाया गया है। सुरंग की फिनिशिंग का काम अगले छह माह में और दिसंबर 2012 तक इसमें रेलवे ट्रैक बिछाने का काम पूरा हो जाएगा।
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Old 04-02-2012, 02:41 PM   #3
sombirnaamdev
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

अमेरिकी नौसेना की विशिष्ट सील टीम ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ राडार की नजरों में धूल झोंकने में सक्षम (स्टैल्थ) हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया। इससे पहले कभी इन हेलिकॉप्टरों को किसी अभियान में नहीं देखा गया।

अमेरिकी मीडिया की खबरों में कहा गया कि इनमें से एक हेलिकॉप्टर में गड़बड़ी आने पर उसे नष्ट कर दिया गया ताकि यह प्रौद्योगिकी किसी के हाथ न लगे।

लगता है कि पेंटागन ने इन हेलिकॉप्टरों को किसी खास अभियान के लिए सुरक्षित रखा था। इनके इस्तेमाल से यह भी लगता है कि अमेरिका इस अत्यधिक जोखिम वाले अभियान में कोई चूक नहीं चाहता था।

पेंटागन के अधिकारी अभी भी चुप्पी साधे हैं कि स्टैल्थ हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल हुआ अथवा नहीं, लेकिन एबीसी न्यूज ने अमेरिकी विमानन सूत्रों के हवाले से बताया कि विस्फोट के बाद के फोटो ने सैन्य विश्लेषकों को इनके इस्तेमाल के बारे सोचने पर विवश किया।

पूर्व रक्षा अधिकारियों ने बताया कि सिकरोस्की एच-60 ब्लैकहाक के पिछले हिस्से में अतिरिक्त पंखे होते हैं जिससे वह बहुत कम आवाज करता है और उसकी प्रौद्योगिकी एफ-117 स्टैल्थ लड़ाकू विमान की प्रौद्योगिकी जैसी है जो राडारों की नजर से ओझल रहता है।

अमेरिका ने अभियान की खबर के लीक हो जाने के खतरे से कार्रवाई के बारे में पाकिस्तान को सूचित नहीं किया और अफगानिस्तान के ठिकाने से इन हेलिकॉप्टरों ने उड़ान भरकर अपने मकसद को पूरा किया।

पेंटागन के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि यह पहला मौका था। यह इतनी तेजी से और इतने नीचे उड़ान भरता है कि आप नहीं जान सकते कि यह सीधा आपकी ओर आ रहा है। यह निश्चित तौर पर सफलता का हिस्सा था।

एक पूर्व विशेष विमानन अधिकारी ने द आर्मी टाइम्स को बताया कि इसका स्टैल्थ लड़ाकू की तरह होना दर्शाता है कि यह ब्लेकहॉक का परिष्कृत संस्करण है। ऐबटाबाद में जिस मकान में कार्रवाई की गई उसके पड़ोस में रहने वाले लोगों ने बताया कि जब तक यह बिल्कुल नीचे नहीं आ गया तब तक उसकी आवाज का पता नहीं लगा।

अमेरिका ने इससे पहले स्टैल्थ हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल नहीं किया था। नब्बे के दशक के मध्य में सेना ने जासूसी हेलिकॉप्टर कामनचे के कई प्रोटोटाइप विकसित किए जो उस समय स्टैल्थ प्रौद्योगिकी में एक क्रांतिकारी कदम था।

सन् 2004 में रक्षा विभाग ने, लेकिन कार्यक्रम को बंद कर दिया और कामनचे हेलिकॉप्टर की प्रौद्योगिकी को ही अन्य हेलिकॉप्टर में इस्तेमाल का फैसला किया। तब से सरकार ब्लेकहॉक हेलिकॉप्टर की आवाज कम करने की दिशा में काम कर रही थी, लेकिन किसी सरकारी कार्यक्रम की घोषणा नहीं की गई।

अधिकारियों का कहना है कि जो मलबा देखा गया वह पहली बार किसी स्टैल्थ हेलिकॉप्टरों का है। उनका मानना है कि स्टैल्थ ब्लैकहॉक का कई साल से इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन इसका पता जनता को नहीं था
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Old 11-02-2012, 10:31 PM   #4
sombirnaamdev
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

आपने जवान, बूढ़े या महिला, पुरुष के लिए खास मोबाइल तो देखा होगा लेकिन अब पहली बार बच्चों की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए एक मोबाइल लॉन्च किया गया है। इस मोबाइल को चाइल्ड फोन नाम दिया गया है। इस मोबाइल में इनबिल्ट जीपीएस है जिसकी मदद से बच्चे की लोकेशन का आसानी से पता लगाया जा सकता है।



यह मोबाइल बेहद साधारण तरीके से बनाया गया है इसमें स्क्रीन नहीं है। इस मोबाइल के पहले चार बटन पर किसी भी चार नंबरों को असाइन किया जा सकता है जिससे इमरजेंसी में बच्चा अपने नजदीकी लोगों से बात कर सके। इस मोबाइल के बीच में एक एसओएस बटन लगा है जिसको दबाते ही एक एमएमएस चार असाइन किए गए नंबरों पर चला जाएगा।

अगर बच्चा कहीं खो जाता है तो मोबाइल में लगे जीपीएस सिस्टम की मदद से बच्चे को ढूंढा जा सकता है। ग्राहक को कंपनी की वेबसाइट पर अपनी लॉगइन डिटेल्स वेबसाइट पर डालनी होंगी और अगर जीपीआरएस काम नहीं कर रहा है तो फोन में जीएसएम तकनीक की मदद से भी बच्चे को खोजा जा सकता है। इस मोबाइल की बाजार में कीमत 4,990 रुपए है।
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Old 11-02-2012, 10:32 PM   #5
sombirnaamdev
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के विगत ग्यारह वर्ष के इतिहास में आज यह पहला अवसर था, जब प्रदेश मंत्रिपरिषद की बैठक में पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय अलंकरण के लिए चयनित दो महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने श्रीमती फूलबासन यादव और श्रीमती शमशाद बेगम को शॉल, श्रीफल और पुष्पगुच्छ भेंट कर प्रदेश सरकार और राज्य की जनता की ओर से सम्मानित किया। उन्होंने श्रीमती यादव और श्रीमती शमशाद बेगम को अपनी ओर से और प्रदेशवासियों की ओर से बधाई और शुभकामनाएं दी।
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि महिला सशक्तिकरण, महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और साक्षरता कार्यक्रमों में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए इन दोनों महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं का चयन भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अलंकरण के लिए किया गया है। यह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। दोनों कर्मठ महिलाओं ने अपने सामाजिक कार्यों के जरिए प्रदेश को भी गौरवान्वित किया है। श्रीमती यादव राजनांदगांव जिले के ग्राम सुकुल दैहान और श्रीमती शमशाद बेगम नवगठित बालोद जिले के गुण्डरदेही की निवासी हैं। पद्मश्री अलंकरण के लिए उनके चयन की घोषणा इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर विगत 25 जनवरी को भारत सरकार की ओर से नई दिल्ली में की जा चुकी है। मुख्यमंत्री ने आज केबिनेट की बैठक में दोनों महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं को आमंत्रित कर उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर मंत्रिपरिषद के सदस्यगण और प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। श्रीमती फूलबासन यादव जहां राजनांदगांव जिले के मां बम्लेश्वरी स्व-सहायता समूह की महिला सदस्यों के साथ मंत्रालय आयी थीं, वहीं श्रीमती शमशाद बेगम भी अपने क्षेत्र के महिला समूह के साथ पहुंची थीं। मुख्यमंत्री ने श्रीमती फूलबासन यादव के नेतृत्व में मां बम्लेश्वरी स्व-सहायता समूह के जरिए महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन के लिए संचालित कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि निकट भविष्य में इस समूह के जरिए प्रदेश की एक हजार महिलाओं को समूह संचालन और समूह प्रबंधन का विशेष प्रशिक्षण भी दिलाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि राजनांदगांव जिले के ग्राम सुकुल दैहान निवासी श्रीमती फूलवासन यादव और बालोद जिले के गुण्डरदेही निवास श्रीमती शमशाद बेगम का चयन भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान के लिए किया गया है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को नई दिल्ली में इसकी घोषणा की जा चुकी है। श्रीमती फूलबासन यादव को महिला सशक्तिकरण के लिए राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2004-05 में और श्रीमती शमशाद बेगम को वर्ष 2006 में छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के अवसर पर मिनीमाता राज्य अलंकरण से भी सम्मानित किया जा चुका है। भारत सरकार ने महिला और बाल कल्याण के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए श्रीमती फूलबासन यादव को वर्ष 2009 में और श्रीमती शमशाद बेगम को 2008 में स्त्री शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया है। इसके अलावा श्रीमती यादव को महिलाओं और बच्चों के कल्याण कार्यक्रमों को गांवों में बेहतर ढ़ंग से लागू कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए वर्ष 2008 में जमना लाल बजाज एवार्ड और महिला उत्थान के लिए वर्ष 2010 में सदगुरू ज्ञाननंद राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वर्ष 2004-05 में उन्हें राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) नई दिल्ली और वर्ष 2006-07 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया नई दिल्ली ने भी सम्मानित किया है। सुप्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता श्री अन्ना हजारे जब सूचना का अधिकार विषय पर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यशाला में शामिल होने रायपुर आए थे, तब उन्होंने भी इस कार्यशाला में श्रीमती फूलबासन यादव की प्रशंसा की थी।
श्रीमती फूलबासन यादव का जन्म 05 दिसम्बर 1969 को छत्तीसगढ़ के वर्तमान राजनांदगांव जिले के ग्राम छूरिया में हुआ था। उन्होंने सातवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की है। वर्ष 2001 में उन्होंने राजनांदगांव जिला प्रशासन के सहयोग से प्रज्ञा मां बम्लेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह का गठन किया और दस महिलाओं को जोड़कर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास शुरू किए। राज्य सरकार और जिला प्रशासन के सहयोग से श्रीमती यादव के नेतृत्व में इस महिला स्व-सहायता समूह के कार्य क्षेत्र का लगातार विस्तार होता गया। आज पूरे राजनांदगांव जिले में मां बम्लेश्वरी महिला समूह के फेडरेशन बन चुका है, जिसमें दस हजार महिला स्व-सहायता समूह शामिल हैं और जिनकी सदस्य महिलाओं की संख्या लगभग डेढ़ लाख तक पहुंच गयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में नशाबंदी और साक्षरता कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार सहित इनमें से विभिन्न महिला समूहों द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 279 उचित मूल्य दुकानों का भी संचालन किया जा रहा है। गांवों में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को गति प्रदान करते हुए इन महिला समूहों द्वारा डेढ़ हजार से अधिक स्कूलों में बच्चों के मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम की भी जिम्मेदारी बखूबी निभाई जा रही है। वर्तमान बलोद जिले के गुण्डरदेही में 01 दिसम्बर 1962 को जन्मी श्रीमती शमशाद बेगम ने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने गुण्डरदेही विकासखंड में राज्य सरकार और प्रशासन के सहयोग से महिलाओं को संगठित कर लगभग दो हजार महिला स्व-सहायता समूहों का गठन किया है। इसके अलावा श्रीमती शमशाद बेगम वर्ष 1990 से साक्षरता अभियान से भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने गुण्डरदेही विकासखंड में दस हजार से अधिक निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने का उल्लेखनीय कार्य किया है। श्रीमती शमशाद बैगम को वर्ष 2006 में छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग द्वारा भी महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जा चुका है।
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Old 11-02-2012, 10:34 PM   #6
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

लंदन।। स्पेन के सर्जन ने विश्व में पहली बार दोनों पैरों का ट्रांसप्लांटेशन किया है। यह दुर्लभ
ऑपरेशन उस व्यक्ति का किया गया, जिसके दोनों पैर एक दुर्घटना के बाद घुटने के ऊपर से काट दिए गए थे। इस ऑपरेशन से दुनिया भर के उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण जगी है, जिनके अंग किसी दुर्घटना के कारण काटने पड़े हैं।

किसी अन्य व्यक्ति से मिले पैरों का दूसरे व्यक्ति में ट्रांसप्लांट करने का यह पहला मामला है। वेलेंसिया के हेल्थ अधिकारी ने बताया कि डॉक्टर पेड्रो कवाडेस के नेतृत्व में डॉक्टरों के दल ने रात भर यह ऑपरेशन किया। पहले इस व्यक्ति को आर्टिफ़िशल पैर लगाए गए थे, लेकिन उनके असुविधाजनक होने की वजह से वह व्हील चेयर के सहारे जीने को मजबूर हो गया था।

वेलेंसिया के ला फे अस्पताल में ऑपरेशन के बाद हेल्थ अधिकारी ने एक बयान में बताया कि विश्व में पहली बार इस तरह का कोई ट्रांसप्लांट किया गया है। ' द डेली टेलीग्राफ ' की खबर के अनुसार, अभी तक दान करने वाले और मरीज दोनों के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। हालांकि, स्वास्थ्य अधिकारियों ने यह जानकारियां बाद में देने का भरोसा दिलाया है।
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Old 15-02-2012, 07:55 PM   #7
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Default Re: जब ऐसा पहली बार हुआ

विश्व के इतिहास में पहली बार इस साल कोई व्यक्ति पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर अंतरिक्ष से बिना किसी मशीन की मदद से कूदने की योजना बना रहा है.
ऑस्ट्रिया के नागरिक फ़ेलिक्स बॉमगार्टनर को एक गुब्बारे के ज़रिए पृथ्वी से 23 मील ऊपर यानी लगभग 120,000 फ़ीट ऊपर पहुँचाया जाएगा.
उन्होंने एक दबाव वाला सूट पहन रखा होगा और जब वे बिना किसी मशीन के छलांग लगाएँगे तो संभव है कि ध्वनि की गति से भी तेज़ गति से पृथ्वी की ओर आएँ.
नासा के सूट से पुख़्ता और लचीला सूट

इस सूट में विशेष एयर प्रेशर बनाकर रखा जाएगा और सांस लेने के लिए ऑक्सिजन की सप्लाई होगी. ये उसी तरह का सूट होगा जैसा अंतरिक्ष यात्री पहनते हैं लेकिन ये उससे ज़्यादा पुख़्ता होगा और फ़ुर्ती के लिए नासा सूट से अधिक लचीला होगा.
यदि बॉमगार्टनर का सूट ठीक से काम नहीं करता तो उतनी ऊँचाई पर उसका ख़ून उबल सकता है.
इस सूट को उसे अत्यंत ठंड से भी बचाना होगा क्योंकि उस ऊँचाई पर तापमान सामान्य से 70 डिग्री नीचे यानी माइनस 70 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है.
लेकिन उनके साथ इस योजना पर काम कर रहे इंजीनियरों का कहना है कि सभी टेस्ट किए जा चुके हैं और जैसी परिस्थितियों का बॉमगार्टनर को सामना करना पड़ सकता है, उसका अभ्यास भी किया गया है और सभी उपकरण तैयार हैं.
बॉमगार्टनर का कहना है, "इसका मतलब यह है कि मैं ये करतब करके दिखा सकता हूँ. पूरा साज़ो-सामान तैयार है."
ब्रिटेन की रॉयल एयर फ़ोर्स के विमानन चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष ग्रुप कैप्टन डेविड ग्रैडवेल इसे जुख़िम भरा, चुनौतीपूर्ण प्रयास बताते हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "वे (बॉमगार्टनर) बहुत तेज़ गति से गिर रहे होंगे इसलिए उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे स्थिर रहें ताकि वे नियंत्रण न खो दें. उन्हें अपनी प्रेशर हेलमेट से ये देख पाना होगा कि आसपास क्या हो रहा है ताकि वे पैराशूट को ठीक से इस्तेमाल कर सकें."
इससे पहले इस तरह की कई कोशिशें हो चुकी हैं लेकिन वे सभी असफल रही हैं.
बॉमगार्टनर इससे पहले मलेशिया के पेट्रोनास टावर से छलांग लगा चुके हैं.
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