24-10-2012, 04:01 PM | #1 |
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शहंशाह जो दिल से शायर था
मित्रो, भारत के अंतिम शहंशाह बहादुर शाह ज़फर का आज जन्म दिवस है ! इस फकीराना तबीयत और मस्त-मौला बादशाह का जीवन अपने-आप में अनूठा रहा है ! उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए आनन-फानन में सम्राट घोषित किया, इस तरह उस समय वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में उभरे, अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, उनके पुत्रों को मौत के घाट उतार कर उनके सर ज़फर को भेंट कर दिए गए और अंततः उन्हें अपने वतन से निर्वासित कर बर्मा (अब मयन्मार) भेज दिया गया, जहां अपनी मिट्टी को याद करते हुए उन्होंने देह-त्याग किया ! उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं यह सूत्र शुरू कर रहा हूं, जिसमें मैं पहले उनका जीवन और फिर शायरी पेश करूंगा ! उम्मीद है, यह सूत्र आपको कई नई जानकारियां देगा ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
24-10-2012, 11:16 PM | #2 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर वैसे तो भारत के मध्यकाल में राज करने वाले, मुगल काल के आखिरी बादशाह थे, लेकिन इतिहास में उन्हें मुगल शासक के तौर पर नहीं, बल्कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे नायक के रूप में याद किया जाता है, जो राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बने। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आमजन ही नहीं, तमाम राजे-रजवाड़ों ने भी उन्हें अपना बादशाह माना था।
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24-10-2012, 11:21 PM | #3 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्तूबर 1775 को हुआ था। अपने पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद 28 सितंबर 1838 को दिल्ली के बादशाह बने। उनकी मां ललबाई हिन्दू परिवार से थीं। 1857 में जब हिन्दुस्तान में आजादी की चिंगारी भड़की, तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों से युद्ध छेड़ने का बिगुल फूंक दिया।
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24-10-2012, 11:22 PM | #4 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय अंग्रेज काफी मजबूत हो चुके थे और जफर की सल्तनत कमजोर पड़ने लगी थी। इसी समय वह ऐसे नायक के रूप में उभरे जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रूप से स्वीकार करते थे। उन्हीं के नेतृत्व में हिन्दू और मुसलमानों ने अंग्रेजों से स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई एक साथ मिलकर लड़ी। 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया था। इसमें हिन्दू और मुसलमानों ने एक साथ भाग लिया था, कहा जा सकता है कि वह देश की राष्ट्रीय एकता के प्रतीक नायक थे।
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25-10-2012, 12:35 AM | #5 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
संग्राम के लिए निश्चित तिथि से पहले ही मेरठ छावनी के सैनिकों ने कारतूस में सुअर और गाय की चर्बी होने पर विद्राह छेड़ दिया था। बागी सैनिक विद्रोह के लिए निश्चित 10 मई से पहले ही अपने बंदी साथियों को छुड़ाकर मेरठ छावनी से भाग निकले। विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित कर दिया। गद्दीनशीन होने के बाद बादशाह ने अपने पहले आदेश में हिन्दू मान्यताओं से जुड़ी गाय का वध प्रतिबंधित कर दिया। इस फैसले से सांप्रदायिक एकता पर अच्छा प्रभाव पड़ा।
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25-10-2012, 06:24 PM | #7 | |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
Quote:
इस मशहूर गीत की रचना दिल्ली से बर्मा के रास्ते मे हुआ था। |
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25-10-2012, 06:50 PM | #8 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
पहले तो इस शानदार सूत्र के लिए आपको धन्यवाद. और एक ख़ास बात जो लोग इस अंतिम मुग़ल बादशाह के बारे में और जानना चाहते है तो इस दूरदर्शन सीरियल को जरुर देखे. इसमें अशोक कुमार ने बादशाह बहादुर शाह जफ़र की भूमिका निभाई थी.
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31-10-2012, 07:22 AM | #9 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
बहादुर शाह जफर मुल्क की आवाम से मोहब्बत करने वाला बादशाह था। वह हिन्दुस्तान की मुकम्मल तस्वीर को हिन्दू और मुसलमानों के साथ देखता था। मुसलमान शासक होने के बावजूद उसने हिन्दुओं की मान्यताओं और परंपरा से जुड़े अनेक कार्य किए, जिससे देश की एकता पर उसका सकारात्मक प्रभाव हुआ। राजनीति के अलावा जफर की साहित्य में भी गहरी रूचि रही। उनके काल को उर्दू कविता का स्वर्णिम काल कहा जाता है। जफर ने हिन्दी और उर्दू मिश्रित भाषा में गजलें लिखीं, जो बाद में साहित्य की नवीन शैली और परंपरा रूप में विकसित हुई। जफर के नेतृत्व में किए गए युद्ध के शुरुआती परिणाम तो हिन्दुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे, लेकिन अंग्रेजों के छलकपट से प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख बदल गया और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए।
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31-10-2012, 07:29 AM | #10 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली, लेकिन अंग्रेज मेजर हडसन ने उन्हें बेटे मिर्जा मुगल, खिरज सुल्तान और पोते अबू बकर के साथ पकड़ लिया। अंग्रेजों ने उसके पुत्रों के सर काटकर बहादुर शाह जफर के सामने परोस दिए। आजादी की बगावत को पूरी तरह खत्म करने के लिए अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह का निर्वासित कर रंगून भेज दिया। जहां सात नवंबर 1882 को उनकी मौत हो गई। रंगून में उनका मकबरा आज भी है।
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