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#91 |
Diligent Member
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![]() और ये मानसिक स्वतंत्रता और ये आनंद क्या मनोरंजन नहीं ? शायद आप न पीते हों परन्तु जो पीते उनके लिए तो ये आनंद की ही बात है न ! अब यह तो अलग बात हुई की कौन अपनी स्वतंत्रता का कैसा उपयोग करता है ! अक्सर देखा जाता है की मनुष्य का आतंरिक स्वाभाव नशे में बहार आता है और उसकी प्रवत्तिया उसके आचरण के बारे में दर्शाती हैं ! हमने अक्सर यह भी देखा है की सारे शराबी नशे के बाद बहकते नहीं ...सारे अभद्रता नहीं करते ! जहाँ तक व्यक्तिगत खुशी का सवाल है तो मनुष्य जीना चाहता है और जीने के लिए उसे किसी न किसी चीज़ से आसक्त तो रहना ही पड़ता है ! विरक्ति तो उससे निर्वाण की और ले जायेगी या ये कहो की वह मोक्ष को प्राप्त हो जायेगा और एक गरीब इंसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है ! जिस ठण्ड को हम हवाला देकर अपनी राज़ईओ में दुबके रहते हैं उसी ठण्ड में कोई कम वस्त्रों में शारीरिक परिश्रम कर रहा होता है ... मुझे एक प्रसंग याद आता है ...स्वामी रामकृष्ण परमहंस का ! कहा जाता है की स्वामी जी को विशेष वस्तु से लगाव नहीं था परन्तु स्वादिष्ट भोजनो के प्रति वो बहुत आसक्त रहते थे ! उनके शिष्य इस बात से बहुत आहात थे और प्रायः इस बात का विरोध करते थे ! उनका मानना था की स्वामी जी इस बात से अपनी छवि धूमिल करते हैं ! आखिर हार मानकर उन्होंने इस बात की शिकायत स्वामी जी की पत्नी से की ! उनकी पत्नी के पूछने स्वामी जी ने स्पष्टीकरण दिया ! उनका कह्नना था की जब मैंने सब कुछ त्याग ही दिया है तो मेरे जीवन का क्या महत्व? तब कैसा जीवन? इस जीवन को बचाने के लिए ही मुझे किसी न किसी एक वस्तु यानी भोजन से आसक्त रहना ही पड़ता है ! जिस दिन मै खाने से मुह मोड लूं समझ लेना मेरा वक्त नजदीक आ गया है ! और वास्तव में ऐसा हुआ भी ! उनके भोजन छोड़ने के ३ दिन के उपरान्त ही उनकी म्रत्यु हो गई या ये कहिये की वो निर्वाण को प्राप्त हो गए ! अरविन्द जी यह उदाहरण मात्र यही बताने के लिए है की जीवन के लिए आसक्ति कितनी ज़रुरी है ! और एक गरीब इंसान के लिए छोटी छोटी खुशिया ही आसक्ति का कारन बनती है ! अरविन्द जी यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब चोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ? अरविन्द जी इस चक्रवात में कहाँ से शुरुवात की जाए यही समझना है हमें ! और यह शुरुवात किसी एक खराब मछली को निकालने से ही नहीं होगी !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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#92 |
Diligent Member
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हम्मम्मम अब जोड़दार बहस हो रहा है............अब लगता है की कोई निष्कर्ष निकल कर ही रहेगा.
मैं थोडा लेट हो गया.मैं कब से कहना चाहता हूँ की की इस फोरम पर सभी सदस्य वयस्क है.सब को अपना सही गलत सोचने की समझ सकती है.अब प्रवचन देने से कोई लाभ नहीं है.मेरे हिसाब से सभी अपने अपने तर्क पर सही हैं.हर विषय के सही और गलत पासे होते हैं. |
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#93 | |
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Last edited by Prince; 21-12-2010 at 10:52 PM. |
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#94 | |
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#95 | |
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विवाह मात्र शारीरिक ही नहीं आत्मिक मिलन भी है और यही आत्मिक मिलन सम्पूर्णता का अंतिम चरण है ! कुल मिलाकर कम शब्दों में कहा जा सकता है की यह एक सामाजिक व्यस्था है जो संसार और मनुष्य के पूरण हेतु अति आवश्यक है !
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#96 |
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विद्रोही जी मैं आपकी सारी नहीं पर तक़रीबन बातों से सहमत हूँ
असहमति सिर्फ इस बात पर है "यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब छोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?" पर अगर आपकी नजर में सारे लोग ही गंदे हो चुके हैं तो बहस किस बात पर अंत में आपका हस्ताक्षर ( वैचारिक मतभेद संभव है )
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#97 | |
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धन्यवाद !
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#98 | ||||
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#99 | |
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आपने बात उठाई थी, एक गरीब की, जिसके बच्चो के तन पर कपड़े नहीं है और भूखे पेट है, और वो मनोरंजन के लिए शराब पीता है। तो आप खुद ही आपने आप से पूछिए, या सोचिए की अगर आप उस गरीब के जगह रहते, तो बजाय अपने बच्चो को रोटी और कपड़ा देने के आप शराब पीते, क्या आपकी आत्मा नहीं धिक्कारेगी। क्या शराब पीने के पहले आपको अपने बच्चो के भूखे और नंगे चेहरे नहीं नजर आएंगे। भईया, कम से कम उदाहरण तो सही ढंग का चुनिये। आपने स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उदाहरण लिया है, वो भी शराब और शराबी के पक्ष को सही ठहराने के लिए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने भूख के संबंध मे ऐसा निर्णय लिया था, न कि शराब के व्यसन के लिए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कभी शराब या शराबी के लिए कोई आदर्श पेश नहीं किया। भूख, प्यास, और सांस जीवन की परमावश्यकता है, इसके बगैर जिंदा रहना मुश्किल है, जैसा की स्वामी रामकृष्ण परमहंस के साथ हुआ। एक बात और कहना चाहूँगा, जहा शराब कुछ देर के लिए आनंद के सागर मे डुबो के रखता है, वही इसकी कितनी हानिया है, उसपर भी जरा एक बार नजर दौड़ा लीजिएगा। दोस्त, जो गलत है, उसके पक्ष मे कितना भी उदाहरण दे दीजिये वो गलत ही रहेगा। Last edited by arvind; 22-12-2010 at 09:33 AM. |
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#100 | ||
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प्रिंस बाबू, अगर एक सदस्य ने गलती कि है, तो उसका देखादेखी आप भी गलती करेंगे, तो फिर आपमे और उसमे अंतर क्या रह जाएगा? क्या बचकानी बात करते हो यार? और जहा तक आप जिस व्यक्तिगत नोट कि बात कर रहे है, कृपया उसे फिर से पढ़ ले, उक्त नोट अमित जी ने मुझे और अभिषेक जी को लिखा है और वो भी इस सूत्र के संदर्भ मे ही है। Quote:
Last edited by arvind; 22-12-2010 at 09:49 AM. |
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